फतेहपुर सीकरी – हम तो घूम आये थे और आप में से बहुतसे भी घूम आये होंगे. प्रागैतिहासिक काल से ही यहाँ मानव बस्ती अनवरत रही है. विक्रम संवत १०६७ = १०१० ईसवी के एक शिलालेख में इस जगह का नाम “सेक्रिक्य” मिलता है. सन १५२७ में बाबर खानवा के युद्ध में विजयी होकर (फतह के बाद ) यहाँ आया और अपने संस्मरण में इस जगह को सीकरी कहा है. उसके द्वारा यहाँ एक जलमहल और बावली के निर्माण का भी उल्लेख है. कहते है बादशाह अकबर संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के दरगाह के लिए पैदल ही निकल पड़ा था. रस्ते में ही सीकरी पड़ता है. वहां एक सूफी फ़कीर शेख सलीम चिश्ती से मुलाकात हुई. फ़कीर ने अकबर से कहा बच्चा तू हमारा इंतजाम कर दे, तेरी मुराद पूरी होगी. कुछ समय पश्चात् अकबर की हिन्दू बेगम जोधाबाई गर्भवती भी हो गई. कहा जाता है कि अकबर ने जोधाबाई को जचकी (डिलिवरी) के लिए मायके भेजने के बदले सीकरी के सलीम चिश्ती के पास ही भिजवा दिया (मानो उसने कोई नर्सिंग होम खोल रखा हो!). १५६९ में वहीँ एक पुत्र का जन्म भी हो गया और सलीम चिश्ती की बात सच निकली. उस फ़कीर को इज्जत बख्शने के लिए बालक का नाम सलीम ही रख दिया गया जो बाद में जाकर जहाँगीर कहलाया. अकबर ने निश्चय कर लिया था कि जहाँ बालक पैदा हुआ वहां एक सुन्दर नगर बसायेंगे जिसका नाम था फ़तहबाद जिसे आज हम फतेहपुर सीकरी के नाम से जान रहे हैं. मुग़ल शासनकाल का यह प्रथम योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया एक वैभवशाली नगर माना जाता है.
सन १५६० में आगरा के किले की मरम्मत और कुछ नए निर्माण के बाद अकबर की राजधानी वहीँ थी परन्तु सीकरी में नए नगर फतेहबाद के बन जाने और उस सूफी संत के सानिध्य के लिए अकबर ने अपना निवास और दरबार आगरा से सीकरी (फतेहबाद) स्थानांतरित कर दी. यहीं रहते रहते ही सभी धर्मों के अच्छी अच्छी बातों को मिला जुला कर अकबर ने अपनी “दीने इलाही” नामक नए धर्म की स्थापना भी की थी परन्तु इस नए धर्म को स्वीकार करने के लिए किसी को वाध्य नहीं किया. बीरबल सहित कई कुलीन दरबारियों ने ही अकबर का साथ दिया था. एक और काम अकबर ने किया. एक विशाल हरम का निर्माण जिसमे था विभिन्न राज घरानों से उपहार स्वरुप प्राप्त राज कन्यायों और विभिन्न देशों की सुन्दर स्त्रियों का अभूतपूर्व संग्रह. वे सब हिजडों की अभिरक्षा में रहते थे और हरम में बादशाह के पहुँच जाने से उल्लासपूर्ण उत्सव का माहौल बनता था. बेचारा वाजिद अली शाह बेकार ही बदनाम रहा. १५७२ से लेकर १५८५ तक अकबर वहीँ रहा. इसके बाद शहर में पानी की किल्लत तथा कुछ अन्य राजनैतिक कारणों से अकबर ने लाहौर को अपनी राजधानी बना ली थी. सन १६०० के बाद शहर वीरान होता चला गया हलाकि कुछ नए निर्माण भी यहाँ हुए थे.
इस संक्षिप्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बाद अब हम कुछ देखने का प्रयास करते हैं. जैसे हमने प्रारंभ में ही कह दिया था कि हम तो बस घूम आये थे. अभी अभी हमारे एक पुर्तगाली मित्र ने हमें कुछ चित्र भेजे हैं उन्हें देख कर हमें बड़ी ग्लानि हुई. हमने जाना कि हमने वास्तव में कुछ देखा नहीं था बस घूमा भर था. तो चलिए मिल कर देखें.
दो तरह से यहाँ की इमारतों को देखा जा सकता है. या तो आप नीचे से ऊपर की और बढ़ें या बुलंद दरवाज़े से घुस कर ऊपर से नीचे आयें. बुलंद दरवाज़े तक पहुँचने के लिए पत्थर की सीढियों से १३ मीटर ऊपर आना होगा. ऐसा लगता है कि ऊंचे पहाड़ी चट्टानों को तीन स्तरों पर काट कर भवनों का निर्माण हुआ है. तो हम सबसे पहले दिख रहे चित्र जो बुलंद दरवाज़े का है के अन्दर घुस गए. अन्दर जाकर जब पलट कर देखते है तो पीछे से वही दरवाज़ा बड़ा विलक्षण दिखता है. यह “बुलंद दरवाज़ा” सन १६०२ में अकबर के गुजरात विजय की स्मृति में बनाया गया था. यह दरवाज़ा संभवतः विश्व में विशालतम है जिसकी ऊँचाई ५४ मीटर है.
सामने ही हमें आकर्षित करता है शेख सलीम चिश्ती का संगेमरमर का बना दरगाह. इसे सन १५८०-८१ में बनाया गया था. मुग़ल कला का एक अद्भुत नमूना कहा जा सकता है. यहाँ की जालियां बड़ी खूबसूरत है. लोग मन्नत मांग कर इन जालियों में धागा बांध देते हैं. ये बात और है कि मन्नत पूरा हो जाए और वापस आकर देखें तो धागा पहचाना नहीं जा सकेगा. लेकिन कुछ खुलते भी रहते हैं, किसी और का ही सही.
इस भवन को हुजरा कहा गया जिसके अन्दर नमाज़/इबादत के लिए कमरे बने हैं.
वास्तव में हम यहाँ जमा मस्जिद के अन्दर ही के विशाल अहाते या भूभाग में खड़े हैं. यहाँ इधर उधर कई कब्रें भी दिखेंगी. अन्दर से मस्जिद का दृश्य:
“बादशाह दरवाज़ा” इसी दरवाज़े से होकर अकबर मस्जिद और दरगाह में प्रवेश करता था. यह ठीक मस्जिद के सामने है.
बादशाही दरवाज़े से नीचे आने पर हम पहुँचते है यहाँ के उस शाही रिहायसी हिस्से में जहाँ बहुत सारे आवास भवन, मनोरंजन की सुविधाएँ आदि निर्मित की गयी हैं. चलिए यह है “दीवाने ख़ास”:
दीवाने ख़ास में बीचों बीच अकबर बादशाह के बैठने की व्यवस्था इस खंभे के ऊपर गोलाई लिए बनी है. इस संरचना को सँभालने के लिए खंभे पर ३६ ब्राकेट्स बने हैं. पञ्च महल, बदगिर या हवा महल. यह शाही हरम से लगा हुआ है. ऊपर से किले का नज़ारा मनमोहक है. .
“पच्चीसी” यहाँ फर्श पर चौसर खेलने के लिए बोर्ड बना है. यहाँ खेलने के लिए बांदियों को जीवित मोहरों के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.
अनूप तालाब – कहते हैं यही बैठ कर तानसेन गाया करता था.
ख्वाबगाह से लिया गया एक चित्र
जोधा बाई का महल शाही हरम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसके अन्दर कई हिन्दू भित्ति चित्र आदि अलंकरण के बतौर प्रयुक्त हुए हैं.
मरियम का आवास – यहाँ अकबर की माता हमीदा बानु बेगम रहा करती थीं.
भवनों में अलंकरण
छायाकार: जिल Gil
trotter@sapo.pt
यहाँ नीचे एक वीडियो भी है. समय निकाल कर देख भी लें
अप्रैल 6, 2009 को 6:52 पूर्वाह्न
सीकरी को देखा है। आज तक इस से सुंदर राजकीय कॉम्पलेक्स नहीं देखा।
अप्रैल 6, 2009 को 7:23 पूर्वाह्न
आज भी बेहतरीन प्रस्तुति … बहुत अच्छा लगा।
अप्रैल 6, 2009 को 8:23 पूर्वाह्न
पुरानी यादें ताज़ा हो आयीं.धन्यवाद.
अप्रैल 6, 2009 को 8:34 पूर्वाह्न
बहुत सुंदर चित्र और ऐतिहासिक रिपोर्ट .ऐसी स्थलों पर वही बेहतर लिख सकता है जिसे इतिहास लेखन में रूचि और अनुसन्धान के प्रति गहरी ललक हो .मुझे बहुत खुशी है कि इस क्षेत्र विशेष में मुझे एक प्रेरक के रूप में ,आप जैसा इतिहास के प्रति समर्पित ब्यक्तित्व मिला है जो लगातार ठोस और गहन जानकारी दे रहा है .
अप्रैल 6, 2009 को 8:49 पूर्वाह्न
“बहुत मनमोहक चित्र …किसका मन नहीं करेगा जाने का….”
Regards
seema
अप्रैल 6, 2009 को 10:39 पूर्वाह्न
आपने पुरानी यादे ताजा करवा दी. एक फ़िल्म आई थी, राजकुमार और हेमामालिनी की लाल पत्थर, उसमे यहां का फ़िल्मांकन था तो बस साहब हम भी पहुंच गये फ़तेह पुर सीकरी देखने.
बहुत ही राजसी ठाठ बाठ वाली जगह रही होगी.
रामराम.
अप्रैल 6, 2009 को 11:12 पूर्वाह्न
फतेहपुर सिकरी हमने भी देखा है मगर आप ने आज यादें ताज़ा कर दी.
आप के पुर्तगाली दोस्त ,बाहर से आये थे इस लिए उन्होंने बहुत ध्यान से इस जगह को देखा है.वास्तव में हम अपनी चीजों को अक्सर इग्नोर करते हैं..इसी कारण इतना ध्यान नहीं देते .aaj is post ke बहाने हमें भी इतनी सूक्ष्मता से इस जगह के बारे में और जानने का अवसर मिला.जोधाबाई का महल भी बहुत खूबसूरत लगा..ताल किनारे तानसेन की जगह !बांदियाँ और चौसर..अब इस जगह को देख कर कल्पना कर सकते हैं कि बादशाह अकबर के भी क्या राजसी ठाट रहे होंगे!
अप्रैल 6, 2009 को 11:43 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर चित्रों से सुसज्जित,बहुत बढिया जानकारी दी है।फतेपुर सीकरी हम्ने अभी तक नही देखा है। आपकी पोस्ट पढ़ कर काफी जानकारी मिली।आभार।
अप्रैल 6, 2009 को 12:08 अपराह्न
पूरा परिचय मिल गया फतेहपुर सीकरी का । धन्यवाद ।
अप्रैल 6, 2009 को 1:39 अपराह्न
ek baar fir achhi aur rochak jankari…
अप्रैल 6, 2009 को 2:32 अपराह्न
बहुत साल पहले गयी थी फतेहपुर सिकरी ,लेकिन उसकी तस्वीर दिल में एक जगह बना गयी. मुझे यह मुग़ल कालीन अन्य इमारतों से भिन्न लगा.क्या यह सच है या सिर्फ एक अज्ञानी का भ्रम ? इसके शिल्प और महलों में नजाकत सी लगी थी .यादें ताजा करने के लिए आभार .
अप्रैल 6, 2009 को 5:38 अपराह्न
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
अप्रैल 6, 2009 को 5:47 अपराह्न
आप के चित्र तो खुद बोलते से लगते हैं ! मैं पहले फतेहपुर और फतेहपुर सीकरी को एक ही समझता था !
अप्रैल 6, 2009 को 5:58 अपराह्न
कवि ने राज्याश्रय के प्रति उदासीनता दिखाते हुए कभी कहा था- संतन को कहाँ सीकरी सो काम. बहुत बढ़िया सर,आपका काम कलेक्टर’स डिलाईट है. ज़रा ११वीन शताब्दी के उस शिलालेख का अनुवाद भी देते तो पता चलता कि उस वक़्त कौन बैठा था वहां.
अप्रैल 6, 2009 को 6:30 अपराह्न
BAHOT HI KHUBSURAT MANMOHAK GYANWARDHAK POST HAI YE… MAZA AAGAYA PADHKE DEKH KE ISE… HAM TO KABHI JAA NAHI PAAYE … MAGAR IS POST KO DEKHKAR AISA KATAI NAHI LAG RAHA HAI KE HAN SE WO AB BACH PAAYA HAI… BADHAAYEE AAPKO,…
ARSH
अप्रैल 6, 2009 को 6:39 अपराह्न
एतिहासिक तथ्यों के साथ साथ सुंदर चित्रों सहित फतेहपुर सीकरी का परिचय कराने के लिए आभार !
अप्रैल 6, 2009 को 6:42 अपराह्न
उफ्, इतने चित्र! इतने सुन्दर चित्र! इतना विस्तृत विवरण! ऐसा आधिकारिक विवरण! अब तो फतहपुर सीकरी जाने से पहले सौ बार सोचना पडेगा। वास्तविकता यदि इतनी ही सुन्दर और मनोरम नहीं हुई तो?
आपके परिश्रम को नमन। आपको अभिनन्दन।
अप्रैल 6, 2009 को 7:14 अपराह्न
बहुत सालों पहले फतेहपुर सीकरी की यात्रा का मौका मिला था. आज आपकी सचित्र पोस्ट पढकर पुन: आखों के सामने वही दृ्श्य चलचित्र की भांती घूमने लगे……आभार
अप्रैल 6, 2009 को 7:14 अपराह्न
chaliye fatehpur bhi ghoom aaye..maza aa gaya..
अप्रैल 6, 2009 को 7:17 अपराह्न
स्कूल से उड़ी लगाकर फतेहपुर सीकरी ही पंहुचा करते थे।…क्या दिन थे वह भी।
अप्रैल 6, 2009 को 7:26 अपराह्न
ये तो नई जानकारी दी आपने मेरे लिये — सीकरी यहाँ बैठे हुए घूम लिये आभार !
– लावण्या
अप्रैल 6, 2009 को 8:13 अपराह्न
ग्रेट! मैं कोटा रेल मण्डल में रहते हुये अनेक बार ट्रेन से फतेहपुर सीकरी से गुजरा। पर देखा तो अब, आपके पोस्ट के माध्यम से।
अप्रैल 6, 2009 को 8:16 अपराह्न
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी इस ऐतिहासिक शहर के बारे में. साथ ही बढ़िया विडियो भी.
अप्रैल 6, 2009 को 9:16 अपराह्न
वर्षों पहले देखी थी यह सारी जगहें । पर लगता है कि मैंने क्या देखा था। दिखाया तो आपने आज।
वाह (-:
अप्रैल 6, 2009 को 9:45 अपराह्न
चित्रो और जानकारी का अद्भुत संगम ह ये पोस्ट ।
अप्रैल 6, 2009 को 11:00 अपराह्न
hamesha ki tarah, gyan,dristi,rochakata . achcha laga padhkar…………..vajid ali shah bekar hee badnam hai !
अप्रैल 6, 2009 को 11:04 अपराह्न
Fatehpur Seekri meri priya atihasik imarton mein se ek hai. Yahan gaye huye kareeb 8 saal ho gaye. Aapke aalekh mein kuch nayi batein pata chalein.
Waise yahan ke guide dwara batayi jane wali katha jab humne ASI ke signboards se bhinna payi to do teen guides ne mil kar ASI walon par khoob tanj kase. We kehte hain ki unke purkhon dwara transfer ki gayi baat jyada sahi hai.
Khair, mujhe aapse ye baat janni thi ki film Jodha Akbar ke samay ye controversy huyi ki akbar ki wife ka naam jodha nahin tha jabki fatehpur seekri mein mariam ke mahal ke bagal mein jodha bayi ka bhi mahal hai. Aisa kis liye hua ?
अप्रैल 6, 2009 को 11:57 अपराह्न
बहुत ही सुंदर चित्र के संग सुंदर वर्णान किया आप ने, मेने अपना बचपन आगरा मै ही बिताया है.
धन्यवाद
अप्रैल 7, 2009 को 7:51 पूर्वाह्न
आप तो बैठे बिठाए सब जगह की सैर करा देते हैं….बहुत खूबसूरत चित्र और साथ ही ऐसी जानकारी….जिसे हम सब को जानना ही चाहिए……..धन्यवाद..
अप्रैल 7, 2009 को 11:38 पूर्वाह्न
सुब्रमनियम जी,
आज फिर एक और काम के जानकारी दी. जब भी फतेहपुर सीकरी जाऊँगा, तो दोबारा इस पोस्ट को पढ़कर जाऊँगा.
अप्रैल 7, 2009 को 11:51 पूर्वाह्न
धन्यवाद. मेरा टिकट का पैसा बच गया. 🙂
अप्रैल 7, 2009 को 8:29 अपराह्न
न जाने क्यों कई बार आगरा गया लेकिन फतेहपुर सिकरी न जा पाया आज आपने घुमा ही दिया धन्यबाद
अप्रैल 10, 2009 को 8:14 पूर्वाह्न
Hamesha ki tarah sukshmta ke saath sundar jaankari.
अप्रैल 10, 2009 को 1:37 अपराह्न
फतेपुर सीकरी…को एक फिल्म लाल पत्थर …में देखा था …आगरा कई बार जाना हुआ लेकिन वहां की गर्मियों के कारण हिम्मत नही होती …ये पोस्ट अद्भुत है इस्मेंकोई दो राय नही एक ही बार में पूरीपढ़ डाली …इस बार वर्णन चित्र और प्रस्तुति आउट स्टेन डिंग है ….बादशाह दरवाजा ,शेख सलीम चिश्ती की दरगाह ..ख्वाब गाह,दीवाने ख़ास ,बंदियों का जीवित मोहरों की तरह इस्तेमाल करना सभी कुछ ….आपकी इस पोस्ट की रचनात्मकता के कारण ,,,बस अभी एक नई पोस्ट लिखने का आइडिया दिमाग में आगया है,शुक्रिया
अप्रैल 21, 2009 को 11:50 पूर्वाह्न
भाई आपने याद ताज़ा कर दी . बहुत बहुत धन्यवाद. सच कहें तो यहाँ आकर एक सुकून मिलता है. मै यहाँ अपने परिवार के साथ घूम चुका हूँ. आपने फहतेहपुर सीकरी को जिंदा कर दिया हे बहुत बहुत शुक्रिया. आप येसे ही ऑर दर्शनीय जगहो का अवलोकन कर के हमे दिखाएँ.
मई 24, 2009 को 1:41 पूर्वाह्न
सुंदर रिपोर्ट
जून 5, 2009 को 3:15 अपराह्न
thanks for your lovely & knowlegeable information. i went to fatehpur seekri on 18th April 2009. it was really a great experience to me. but i didnt know so much in briefly about seekri fort. u done a wonderful job. thanks a lot.
मार्च 12, 2010 को 11:41 अपराह्न
bahut aacha kalecshain dikhaya kai salo se khoj raha tha mil gaya thanks a lot of
दिसम्बर 16, 2010 को 2:05 अपराह्न
फतेहपुर सीकरी का परिचय कर प्रागैतिहासिक काल से ही यहाँ मानव बस्ती अनवरत रही है I बहुत सुंदर चित्र और ऐतिहासिक रिपोर्ट .ऐसी स्थलों पर वही बेहतर लिख सकता है जिसे इतिहास लेखन में रूचि और अनुसन्धान के प्रति गहरी ललक हो .मुझे बहुत खुशी है कि इस क्षेत्र विशेष में मुझे एक प्रेरक के रूप में ,आप जैसा इतिहास के प्रति समर्पित ब्यक्तित्व मिला है जो लगातार ठोस और गहन जानकारी दे रहा है .
अप्रैल 17, 2011 को 3:59 अपराह्न
my name is kunal
मई 1, 2011 को 3:30 अपराह्न
good photographs………..