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भारतीय रेल से आईआरसीटीसी है या आईआरसीटीसीसे भारतीय रेल?

यह कैसा सवाल है? भारतीय रेल विशाल हाथी है तो आईआरसीटीसी उसका महज एक भाग, एक उपकम्पनी। लेकिन मित्रों, आईआरसीटीसी प्रति निकले जनमानस के यह बोल जब कोई रेल अधिकारी बोलता है तो सहज ही समझ आता है, की रेल अधिकारियोंको आईआरसीटीसी की बेपरवाह कार्यशैली से कितनी नफ़रत है।

आईआरसीटीसी यह भारतीय रेलवे की मुख्यतः ई बिजनेस संभालने वाली वाणिज्यिक कम्पनी है, जो भारतीय शेयर बाजारोंमें लिस्टेड भी है। भारतीय रेलवे के ई-टिकटिंग यह इस कम्पनी के आय का प्रमुख स्रोत है और एकाधिकार वाला व्यवसाय है। जी मोनोपोली बिजनेस। कोई चैलेंज ही नही, सम्पूर्ण एकाधिकार। रेलवे की टिकट खिड़की से निकलने वाले PRS टिकट दिनों दिन कम होते जा रहे है और ई-टिकीटिंग का व्यवसाय फलफूल रहा है।

खैर! यह रेल प्रशासन का अन्तर्गत मामला है। मगर आईआरसीटीसी उनके द्वारा ई-टिकट निकाले हुए यात्रिओंके प्रति अपनी जिम्मेदारी का वहन योग्य प्रकार से करती है? शायद कभी नही। इसके हमारे पास हर दिन के उदाहरण मिल जाएंगे। ताजा उदाहरण लीजिए, दिनांक 03 मार्च को हजरत निजामुद्दीन से वास्को की ओर जानेवाली 12780 गोवा एक्सप्रेस दौंड स्टेशन से मीरज स्टेशन के बीच मार्ग परिवर्तन कर चलनेवाली थी। यह गाड़ी अपने नियमित मार्ग के पुणे, सातारा, सांगली स्टेशनोंको स्किप अर्थात छोड़कर दौंड, कुरदुवाडी, पंढरपुर होकर मीरज पहुंचने वाली थी। इस सम्बंध में भारतीय रेलवे द्वारा परिपत्रक 27-28 फरवरी को जाहिर हो गए थे, क्या आईआरसीटीसी को यह पता नही था? लेकिन 03 मार्च को हज़रत निजामुद्दीन का चार्ट तैयार किये जाने तक किसी भी कन्फ़र्म यात्री को इसकी सूचना आईआरसीटीसी द्वारा नही दी गयी। भोपाल से आगे मनमाड़ तक के यात्रिओंको जिनके पुणे, सातारा, सांगली के कन्फर्म टिकट थे उन्हें, भोपाल चार्टिंग के वक्त याने 03 मार्च को रात 20:00 के बाद मैसेजेस मिले। क्या यह उचित है?

जल्द मेसेज न देने की वजह टिकट रद्दीकरण के 100% धनवापसी को बचाए रखना यह तो नही? बिल्कुल यही होगी। लेकिन आपके महज कुछ रुपयोंको कमाने का चक्कर और यात्रिओंके प्रति अक्षम्य लापरवाही के चलते कितने ही वरिष्ठ नागरिक, महिला, कामकाजी यात्रिओंको इससे बेइंतहा परेशानी हुई। दौंड में गाड़ी बदलकर पुणे पहुंचना पड़ा या आगे रोड़ से यात्रा करनी पड़ी।

आईआरसीटीसी कहने को भारतीय रेल की उपकम्पनी है, मगर केवल पैसा कमाना यही इस कम्पनी का उद्देश्य है, जिम्मेदारी वहन के मामले में बिल्कुल जीरो। क्योंकी इनके लापरवाही का भुगतान रेलवे अधिकारियों, कर्मचारियों को झेलना पड़ता है। आईआरसीटीसी धरातल पर कभी नजर नही आती। टिकीटिंग सॉफ्टवेयर, प्रणाली भारतीय रेल के CRIS के जिम्मे, टिकट निकालता है यात्री खुद, इनको हर्र लगे न फिटकरी और रंग चोखा चोखा। बस पैसे बनाना है।

आईआरसीटीसी की यही मलाई खाने वाली प्रवृत्ति को देख, हाल ही में यह सुना जा रहा है की, रेलवे की CRIS और रेलटेल कम्पनी को इसमें सम्मिलित करने की सूचनाएं अर्थ विभाग द्वारा की गई है। ताकि आईआरसीटीसी पर कुछ तो संभालने की जिम्मेदारी तय हो? आईआरसीटीसी के बेपरवाह, गैरजिम्मेदाराना हरकतों को काबू में लाने के लिए न सिर्फ इस तरह के निर्णयों को जरूरत है अपितु इनके मोनोपोली बिजनेस जिसने भारतीय रेल ई-टिकट, तमाम खानपान के स्टॉल्स, पैंट्री कार के ठेके, पर्यटन कराने वाली गाड़ियाँ, रिटायरिंग रूम्स आदि को भी भारतीय रेल के द्वारा विकेंद्रीकरण करना जरूरी है। भारतीय रेल ने खुद ही खानपान, पर्यटन और ई-टिकीटिंग व्यवसाय के यथासंभव निविदाएं निकालकर दूसरी सक्षम व्यवस्थाएं निर्माण करना चाहिए। तभी यह एकाधिकारशाही पर लगाम कसी जा सकती है ऐसी सभी पीड़ित रेल यात्री और रेल कर्मियोंकी कामना है।

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