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भारतीय रेल का विकेन्द्रीकरण हो गया?

भारतीय रेल के सम्पूर्ण रेल नेटवर्क पर एक तरह का किराया, एक ही तरह नियम लागू रहते है। रेल प्रशासन रेल्वे बोर्ड की नीति से चलता है। वहाँ से आदेश निकलते है और क्षेत्रीय रेलवे, मण्डल ऐसे स्तरोंपर उनका पालन किया जाता रहा है। लेकिन जब से यह संक्रमण काल की नीतियों मे राज्य प्रशासन के आपदा प्रबंधन समिति की भूमिका को प्राधान्य दिया गया तब से रेल प्रशासन का यात्री सेवाओं के नीति नियमों का विकेन्द्रीकरण हो गया ऐसे प्रतीत होने लगा है।

हालांकि क्षेत्रीय रेल्वे के प्रत्येक परिपत्रक मे ‘रेल्वे बोर्ड की अनुमति’ ऐसे लिखा रहता है मगर जिस तरह से हर क्षेत्रीय रेल्वे की अलग अलग यात्री सुविधाओं को देखते हुए निर्णयोंकी एकसंधता दिखाई नहीं देती। इसका उदाहरण हाल ही मे पश्चिम रेल्वे की दाहोद – भोपाल – दाहोद और महू – भोपाल – महू गाड़ियोंके अनारक्षित और आरक्षित नाट्य मे छिपा है। पश्चिम रेल्वे की यह गाड़िया एक तरफा याने पश्चिम रेल्वे के दाहोद और महू से चलते वक्त अनारक्षित है और भोपाल से आते वक्त केवल आरक्षित। दो अलग अलग क्षेत्रीय रेल्वे के निर्णय मे एक ही राज्य की, मध्य प्रदेश की जनता पीस रही है। एक तरफ से अनारक्षित टिकट तो लौटते वक्त दुगुना किराया दे कर आरक्षित टिकट लेकर यात्रा करनी पड़ती है।

वैसे बहुत से क्षेत्रीय रेल्वे मे अनारक्षित गाड़िया चल रही है, मगर अभी भी कुछ क्षेत्रीय रेल्वे ऐसे है जिस मे यात्रीओंको विनाआरक्षण यात्री गाड़ीमे प्रवेश नहीं है। उदाहरण के लिए मध्य रेल पर अब तक एक भी यात्री गाड़ी अनारक्षित व्यवस्था मे नहीं चल रही है। वहीं मध्य रेल से जुड़े पश्चिम रेल, दक्षिण पूर्व मध्य रेल, दक्षिण मध्य रेल, पश्चिम मध्य रेल आदि मे अनारक्षित यात्री सेवाएं चल रही है। इन क्षेत्रीय रेल मे अनारक्षित टिकट बुकिंग, मासिक पास MST भी उपलब्ध है। राज्य आपदा प्रबंधन की ओर से कोई टिकिटों पर निर्बंध यह वजह समझी जाए तो ही इन सेवाओं पर रोक रहनी चाहिए थी मगर महाराष्ट्र राज्य ने मध्य रेल्वे को सारे टिकटों पर से निर्बंध हटाने का साफ साफ पत्र जारी किए जाने बावजूद मध्य रेल, अनारक्षित यात्री सेवाओं पर कोई उचित निर्णय नहीं ले पा रही है। आज भी मध्य रेल के गैर उपनगरीय क्षेत्र मे विना आरक्षण रेल यात्रा की अनुमति नहीं है वही महाराष्ट्र मे भुसावल – नंदुरबार – सूरत मार्ग की पश्चिम रेल, अकोला पूर्णा नांदेड काचेगुडा परभणी मनमाड मार्ग पर दक्षिण पूर्व की अनारक्षित सेवाएं, नागपूर गोंदिया के दक्षिण पूर्व मध्य रेल की अनारक्षित सेवाए चल रही है। वही मुम्बई से खंडवा, मुम्बई से नागपूर, मुम्बई से पुणे, सोलापूर, कोल्हापूर मार्ग के यात्री अनारक्षित यात्रा के लिए निर्बन्धित है।

यूँ तो रेल से यात्रा करने के लिए हर कोई यात्री अपनी जगह सुरक्षित करना चाहते है, मगर छोटे अंतर, रोजाना या अकस्मात की जानेवाली रेल यात्रा के लिए अनारक्षित टिकट का अनन्य साधारण महत्व है। कई छोटे स्टेशनोंपर आरक्षण केंद्र नही है, ग्रामीण इलाके में लोगोंको ऑनलाइन टिकट निकालना, उन टिकटोंका ऑनलाइन भुगतान करना सहज नही है। सिवाय कम अंतर के लिए बुकिंग एजंट से टिकट आरक्षित करवाना याने चार आने की मुर्गी बारह आने का मसाला साबित होगा। मध्य रेलवे के महाराष्ट्र बहुल भाग के तमाम यात्री अनारक्षित रेल टिकट के लिए आक्रोशित है।

रेल प्रशासन का यह जो भी नियमोंका विकेंद्रीकरण हुवा है, यह देश के सभी यात्रिओंको बहुत भारी पड़ रहा है। गाड़ियोंका विशेष श्रेणी में, त्यौहार विशेष किरायोंके दर में चलाना, प्रत्येक जगह रुकनेवाली सवारी गाड़ियाँ एवं डेमू/मेमू गाड़ियोंमे मेल/एक्सप्रेस किराया सूची लागू होना हमेशा इन्ही गाड़ियोंमे यात्रा करनेवाले यात्रिओंके लिए अनाकलनीय बदलाव है। जब की रेल प्रशासन ने उनकी किराया तालिका में द्वितीय श्रेणी साधारण यह श्रेणी हटाई नही है। रेल प्रशासन किसी भी सवारी गाड़ी को विशेष गाड़ी बनाकर, केवल गाड़ी क्रमांक में बदलाव कर के चला दे तो उस गाड़ी का किराया मेल/एक्सप्रेस दर से देने के लिए यात्री को परेशानी होना सहज है।

रेल प्रशासन को चाहिए की जब आपदा प्रबंधन समितियां अपने निर्बंध में ढील दे रही है तो गाड़ियोंको नियमित क्रमांक देकर चलवाया जाए। जिस तरह शून्याधारित समयसारणी की घोषणा में कई सवारी गाड़ियोंको मेल/एक्सप्रेस में रूपांतरित किया गया था, उसे अब लागू करने की घोषणा कर देनी चाहिए ताकि यात्रिओंको बेवजह ठगे जाने की भावना से छुटकारा तो मिलेगा।

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