यहां किसी का नाम लेना अच्छा नहीं होगा लेकिन मैंने महसूस किया है कि हिंदी के चिट्ठेकार ने अपनी दुनिया को काफी सीमित कर रखा है। यहां लोगों के कई पोस्ट किसी आम नेटिजन को समझ भी नहीं आएंगे। क्यों? क्योंकि वह पोस्ट नारद, नारद पर विवाद, किसी दूसरे चिट्ठा के बारे में लिखा गया है।
वैसे ब्लाग का मतलब तो यही होता है कि ब्लागर जो चाहे वो मर्जी लिखे। लेकिन सार्थकता की कोई बात करेगा? क्या इन विषयों पर धड़ाधड़ पोस्ट लिखना सार्थक है।
मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूं कि मेरा एक दोस्त जो मेरा ब्लाग पढ़ता है उसने मुझे कहा कि यह नारद का एकाधिकार खत्म होगा! इस पोस्ट का क्या मतलब है। फिर मैंने उसे विस्तार से बताया। तब मैंने सोचा कि ऐसे कई ब्लाग हैं जो नियमित रूप से यही लिखते हैं। नि:संकोच उन सभी लोगों में रचानात्मकता है लेकिन क्या वह अपनी रचानात्मक शैली को सही दिशा में लगा रहे हैं?
जुलाई 8, 2007 को 9:02 पूर्वाह्न |
बहुत सही लिखा है आपने, साधुवाद!!
जुलाई 8, 2007 को 9:06 पूर्वाह्न |
not only this but using foul language and posting just to post is really a waste of time and it disuades a netizian to read hindi blogs
जुलाई 8, 2007 को 10:46 पूर्वाह्न |
hi dear,
please just go through our blog : http://www.aajkasudharak.blogspot.com
sudharak
जुलाई 8, 2007 को 12:19 अपराह्न |
कुछ लोगों को मजा आता उसी विषय को बार-बार फ़ेंटने में तो आप क्या कर सकते हैं! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। 🙂
जुलाई 8, 2007 को 12:31 अपराह्न |
मैंने सार्थकता की बात की ना की मेरे या किसी और के कुछ करने की । वैसे मुझे लगता है की मैं क्या … वो लोग भी इस पर कुछ नही कर सकते है ।
जुलाई 8, 2007 को 1:19 अपराह्न |
राजेश,
हिन्दी चिट्ठों के ज्यादातर पाठक चिट्ठे लिखने वाले ही हैं ,आपके मित्र की श्रेणी के पाठक फिलहाल कम हैं । अभी तक हिन्दी के गैर चिट्ठेकार पाठक आपका अखबार ही पढ़ते हैं। वैसे पाठक कोई भी हों ,कितने ही क्यों न हों किसी बहस अन्जाम से पहले छोड़ना अन्य माध्यम भी नहीं चाहते।
जुलाई 8, 2007 को 1:58 अपराह्न |
जहाँ तक मैं समझता हूँ, हिन्दी के चिट्ठे अभी बहुत ही सीमित विषयों पर लिखे जा रहे हैं। ऐसे विषय, जिनमें अधिकांश नेट प्रयोक्ताओं की कोई दिलचस्पी नहीं है। जब तक यह हाल रहेगा, शायद ही हिन्दी चिट्ठों का पाठकवर्ग विकसित हो सके।
जुलाई 8, 2007 को 2:55 अपराह्न |
सही है.
जुलाई 8, 2007 को 3:36 अपराह्न |
क्या हिन्दी के चिट्ठेकार बेकार की चर्चा ज्यादा करते हैं?
चलिये आप ही कुछ नई और काम की चर्चा करिये, हम पढ़ने को उत्सुक हैं।
जुलाई 8, 2007 को 4:20 अपराह्न |
kyon bete, jab kud narad narad alap raha tha tab time wastage nahi thee, ab buddhi aa gayi tere ko, enlightment?
ye tumhara hi likha hai na?
जुलाई 8, 2007 को 7:11 अपराह्न |
यह तो सच है, हिन्दी की कई पोस्टों को बिना बैकग्राउंड जाने कोई समझ नहीं सकता।
मैं इस सब को विकास के चरण के रुप में देखता हूँ, हिन्दी चिट्ठाकारी का विकास धीरे-धीरे हो रहा है, आपकी पोस्ट भी उसी का एक हिस्सा है। 🙂
जुलाई 9, 2007 को 3:14 पूर्वाह्न |
आप द्वारा उठाया गया प्रश्न बहुत महत्व रखता है। हम सबको समय-समय पर इस तरह का आत्म-मंथन करते रहना चाहिये।
जुलाई 9, 2007 को 3:20 पूर्वाह्न |
muje bee bhagawaan ke astitwa ko sweekaarane kaa koee kaaraN nahee.n dikhataa hai kintu bhagawaan ke astitw ko asiddh karanaa bhee to jarooree hai| kyaa hamaare paas bhagawaan ke naastitwa ke pakSh me.n samuchit pramaaN/tark hai.n?
जुलाई 9, 2007 को 3:21 पूर्वाह्न |
kripayaa meree doosaree waalee TippaNee haTaa de.n|