गुनगुनाकर निर्मल कर दे,
अंतर्मन का आंगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।
सोने जैसा रूप
मुद्रा की तर्ज डॉलर
तेरे जलवों की नकल पर,
चल रहे पार्लर
तीर निकले नैनो से,
या बेलन का आलिंगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।
रतनारी आँखे मौन,
ज्यों निकले अंगार
कुरूप समझे सबको
किये सोला सिंगार
टीका करे सास-ननद की
टीका करे सुहागन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।
पल में बुद्ध बन जाती
पल में होती क्रुद्ध
आलिंगन अभिसार,
रूठी फिर तो खैर नहीं,
विकराल रूपा जोगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।
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