प्रदेश हाईकोर्ट ने शैक्षिक योग्यता की मान्यता का बहाना बनाते हुए गैरकानूनी ढंग से प्रार्थी को नियुक्ति न देने पर शिक्षा विभाग पर 20 लाख का हर्जाना चुकाने के आदेश दिए। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने प्रार्थी निगमा देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किए। कोर्ट ने यह हर्जाना राशि 2 माह के भीतर अदा करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट के आदेशानुसार यह राशि एक जनवरी 2008 के बाद के सभी शिक्षा विभाग के मुखिया से वसूलने के आदेश भी दिए।
इन अधिकारियों में शिक्षा सचिव, प्रधान शिक्षा सचिव व अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा विभाग शामिल हैं जिनसे यह राशि प्रो राटा आधार पर उनके कार्यकाल के आधार पर तय की जायेगी। कोर्ट ने शिक्षा विभाग द्वारा राज्य की लिटिगेशन पॉलिसी का ध्यान न रखते हुए मामले को बेवजह अदालत में लड़ते रहने के कारण यह मुआवजा बतौर टोकन निर्धारित किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोर्ट से एक मामले में फ़ैसला आ जाए तो उसी तरह के सिमिलर मामलों में वही फायदा लिटिगेशन पॉलिसी के तहत दिया जाना चाहिए।
मामले के अनुसार प्रार्थी निगमा देवी शिक्षा विभाग में भाषा अध्यापक के रूप में नियुक्त होने का हक रखती थी परंतु शिक्षा विभाग ने उसे नियुक्ति देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उसकी शैक्षणिक योग्यता प्रदेश में रोजगार के लिए मान्य नहीं है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि जब प्रार्थी की योग्यता जैसी ही योग्यता वाली एक अन्य शिक्षिका को नियुक्ति दी गई थी तो प्रार्थी को भी वही लाभ दिया जाना जरूरी था। शिक्षा विभाग ने अपनी गलती मानते हुए प्रार्थी को नियुक्ति देने की इच्छा वर्ष 2014 में जताई थी परंतु प्रार्थी द्वारा उस समय सेवानिवृति आयु पूरी हो जाने के कारण ऐसा करने में असमर्थता जताई थी।