भागलपुर में बाल-विवाह के बढ़ रहे मामले, रिपोर्ट से हुआ खुलासा, 20-24 वर्ष की 41 महिलाएं 18 वर्ष से पहले ब्याही

Bhagalpur

राज्य में बाल-विवाह रोकने के तमाम प्रयासों के बाद भी आशातीत सफलता नहीं मिल पाई है। नेशनल परिवार हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की तीन रिपोर्ट के अध्ययन के बाद यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड (यूएनपीएफए) ने स्थिति पर चिंता जताई है। एनएफएचएस की तीन रिपोर्ट में सुपौल में स्थिति सबसे खतरनाक पाया गया है। इस जिले को रेड जोन में रखा गया है। जबकि सीवान को सेफ जोन में रखा गया है। प्रदेश के 38 जिलों में पूर्वी क्षेत्र के 12 जिले रडार पर हैं।

बिहार की सोशियो-इकोनॉमिक स्थिति पर यूएनपीएफए ने रिपोर्ट जारी की है। यूएनपीएफए की रिपोर्ट के मुताबिक एनएफएचएस सर्वे 4 और 5 की रिपोर्ट के आकलन में गांवों में 43 फीसदी व शहर में 28 फीसदी मामले उजागर हुए हैं। 2015-16 के मुकाबले सुपौल में सुधार हो रहा है, लेकिन स्थिति अब भी रेड जोन में है। 2015-16 में चाइल्ड मैरिज के 60.8 प्रतिशत मामले प्रकाश में आये।

जबकि 2019-21 में 56 प्रतिशत मामले सामने आए। सीवान में 24.7 प्रतिशत से घटकर 21.3 प्रतिशत हुआ है। रिपोर्ट में कास्ट और रिलिजन कटेगरी वाइज मामले का विश्लेषण किया गया है। कास्ट कटेगरी में बताया गया कि अनुसूचित जाति-जनजाति में 49 प्रतिशत बाल विवाह के मामले सामने आए। जबकि रिलिजन कटेगरी में मुस्लिम व इसाई में बाल-विवाह के केस अधिक प्रकाश में आए।

रिपोर्ट के अनुसार, 20-24 आयु वर्ग की 41 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उनकी शादी 18 वर्ष से पहले हुई। 18 से पहले जिनका ब्याह हुआ है, उनमें 63 प्रतिशत अशिक्षित हैं। हालांकि 12 फीसदी उच्च शिक्षा प्राप्त है। कम उम्र में ब्याही गई बच्चियों की आर्थिक स्थिति का आकलन भी किया गया है। इसमें बताया गया कि 54 फीसदी लड़कियां गरीब परिवार से हैं। जबकि 9 फीसदी अच्छे घर से हैं।

यूएनपीएफए की रिपोर्ट में सबसे अधिक खतरनाक स्थिति पूर्वी, कोसी और सीमांचल के जिलों में है। यहां बाढ़ व सुखाड़ से गरीबी है। नदी-दियारा किनारे बसे लोग सिर्फ भोजन का साधन ढूंढ़ते हैं। उन्हें जमीन, मकान तक नहीं है। इनके बच्चे बचपन में ही खेती-किसानी, मछली मारने आदि व्यवसाय से जुड़ जाते हैं।

– शिल्पी सिंह, निदेशक, भूमिका विहार।

 

Rajkumar Raju

5 years of news editing experience in VOB.

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