NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 10

प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के दशमः पाठः (कृषिकाः कर्मवीराः) सर्वनामप्रयोग दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

(कृषिका: कर्मवीराः) पाठ का हिन्दी अनुवाद –

सूर्यस्तपतु मेघाः वा वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका कृषिको नित्यं शीतकालेऽपि कर्मठौ ॥1॥

अन्वयः- सूर्यः तपतु मेघाः वा विपुलं जलं वर्षन्तु। कृषिका कृषिकः नित्यं शीतकाले अपि कर्मठौ।

अर्थ – चाहे सूरज तपाये चाहे बादल अत्यधिक जल बरसायें। किसान और उसकी पत्नी दोनों हमेशा सर्दी में भी कार्य करते रहते हैं। अर्थात् किसान सर्दी, गर्मी, बारिश आदि सभी ऋतुओं में सदा खेत में काम लगे रहते हैं।

ग्रीष्मे शरीरे सस्वेदं शीते कम्पमयं सदा।
हलेन च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः ॥2॥

अन्वयः- ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं, शीते कम्पमयं। तौ तु हलेन कुदालेन च सदा क्षेत्राणि कर्षतः।

अर्थ- गर्मी में उनका शरीर पसीने से युक्त रहता है और सर्दी में ठंड से काँपता रहता है। फिर भी वे दोनों हल और कुदाल से सदा खेतों को जोतते है।

पादयोर्न पदत्राणे शरीरे वसनानि नो।
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति ॥3॥

अन्वयः- पादयोः पदत्राणे न, शरीरे वसनानि न। निर्धनं कष्टं जीवनं, हि सुखं दूरे तिष्ठति।

अर्थ- पैरों में जूते नहीं है, शरीर पर कपड़े नहीं हैं। (किसान का) जीवन बहुत निर्धन और कष्टमय है। सुख तो उनसे दूर ही रहता है।

गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति ॥4॥

अन्वयः- जीर्णं गृहं वर्षासु वृष्टिं वारयितुं न क्षमम्। तथापि कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति।

अर्थ- किसान का घर पुराना होने के कारण वर्षा के समय बारिश का पानी रोकने में असमर्थ है। फिर भी किसानों की कर्मनिष्ठा नष्ट नहीं होती है। अर्थात् वे अपने काम में लगे रहते हैं।

तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता ॥5॥

अन्वय:- तयोः परिश्रमेण क्षेत्राणि सर्वदा सस्यपूर्णानि। या धरित्री शुष्का कण्टकावृता सरसा जाता।

अर्थ- उन दोनों के (किसान और उसकी पत्नी के) परिश्रम से खेत सदा फसलों से युक्त रहते हैं। जो धरती सूखी और काँटों से परिपूर्ण होती है वह भी हरी-भरी हो जाती है।

शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा सर्वेभ्य एव तौ।
क्षुधा- तृषाकुलौ नित्यं विचित्रौ जन-पालको ॥6॥

अन्वयः- तौ सर्वेभ्य एव शाकम्, अन्नं, फलं, दुग्धं च दत्त्वा नित्यं क्षुधा- तृषाकुलौ। विचित्रौ जन-पालकौ।

अर्थ- वे दोनों सभी को सब्जी, अनाज, फल और दूध देकर स्वयं भूख और प्यास से बेचैन रहते हैं। वे दोनों अनोखे जन- पालक है। अर्थात् दूसरों को खाने- पीने की वस्तुएँ उपलब्ध करवाने वाले किसान स्वयं भूखे-प्यासे रहते हैं। ये कितनी विचित्र बात है।

अभ्यास प्रश्न 2

अभ्यास प्रश्न 3

अभ्यास प्रश्न 4

अभ्यास प्रश्न 5

अभ्यास प्रश्न 6

NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 9

प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के नवमः: पाठः (क्रीडास्पर्धा) सर्वनामप्रयोग दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

(क्रीडास्पर्धा) सर्वनाम प्रयोगः– पाठ का हिंदी अनुवाद

हुमा – यूयं कुत्र गच्छथ?

हुमा – तुम सब कहाँ जा रहे हो?

इन्दर: – वयं विद्यालयं गच्छामः।

इन्दर – हम सब विद्यालय को जा रहे हैं।

फेकनः – तत्र क्रीडास्पर्धा: सन्ति। वयं खेलिष्यामः।

फेकन – वहाँ खेल प्रतियोगिताएँ हैं। हम सब खेलेंगे।

रामचरण: – किं स्पर्धाः केवलं बालकेभ्यः एव सन्ति?

रामचरण – क्या प्रतियोगिताएँ केवल बालकों के लिए ही हैं?

प्रसन्ना – नहि, बालिकाः अपि खेलिष्यन्ति।

प्रसन्ना – नहीं, बालिकाएँ भी खेलेंगी।

रामचरणः – किं यूयं सर्वे एकस्मिन् दले स्थ? अथवा पृथक्-पृथक् दले?

रामचरणः – क्या तुम सब एक दल में हो? अथवा अलग-अलग दल में।

प्रसन्ना – तत्र बालिकाः बालकाः च मिलित्वा खेलिष्यन्ति।

प्रसन्ना – वहाँ बालिकाएँ और बालक मिलकर खेलेंगे।

फेकन: – आम्, बैडमिंटन – क्रीडायां मम सहभागिनी जूली अस्ति।

फेकन – हाँ, बैडमिंटन – खेल में मेरी सहभागी जूली है।

प्रसन्ना – एतद् अतिरिक्तं कबड्डी, नियुद्धं, क्रिकेटं, पादककन्दुकं, हस्तकन्दुकं, चतुरङ्गः इत्यादय: स्पर्धा: भविष्यन्ति।

प्रसन्ना – इसके अलावा कबड्डी, जूडो, क्रिकेट, फुटबाल, वॉलीबाल, चेस (शतरंज) इत्यादि प्रतियोगिताएँ होंगी।

इन्दरः – हुमे! किं त्वं न क्रिडसि? तव भगिनी तु मम पक्षे क्रीडति।

इन्दर – हे हुमे! क्या तुम नहीं खेल रही हो? तुम्हारी बहन तो मेरे पक्ष में खेल रही है।

हुमा – नहि, मह्यं चलचित्रं रोचते। परम् अत्र अहं दर्शकरुपेण स्थास्यामि ।

हुमा – नहीं, मुझे सिनेमा अच्छा लगता है। परन्तु यहाँ मैं देखने के लिए रहूँगी।

फेनक: – अहो! पूरनः कुत्र अस्ति? किं सः कस्यामपि स्पर्धायां प्रतिभागी नास्ति?

फेनक – अरे! पूरन कहाँ है? क्या वह किसी भी स्पर्धा में भाग नहीं ले रहा है?

रामचरणः – सः द्रष्टुं न शक्नोति। तस्मै अस्माकं विद्यालये पठनाय तु विशेषव्यवस्था वर्तते। परं क्रीडायै प्रबन्धः नास्ति।

रामचरण – वह (पूरन) देख नहीं आ सकता है। उस के लिए हमारे विद्यालय में पठने के लिए तो विशेष व्यवस्था है। परन्तु खेलने के लिए प्रबन्ध नहीं है।

हुमा – अयं कथमपि न न्यायसङ्गतः। पूरनः सक्षमः, परं प्रबन्धस्य अभावात् क्रीडितुं न शक्नोति।

हुमा – यह किसी तरह से भी उचित नहीं है। पूरन सक्षम है, परन्तु प्रबन्ध के अभाव से खेल नहीं सकता है।

इन्दरः – अस्माकं तादृशानि अनेकानि मित्राणि सन्ति। वस्तुतः तानि अन्यथासमर्थानि।

इन्दर – हमारे वैसे (पूरन) अनेक मित्र हैं। वस्तुत वे सब भिन्न तरीके से योग्य है।

फेकनः – अतः वयं सर्वे प्राचार्यं मिलामः। तं कथयामः। शीघ्रमेव तेषां कृते व्यवस्था भविष्यति।

फेकन – अतः हम सब प्राचार्य से मिलते हैं। उनको कहते है। शीघ्र ही उन सब के लिए व्यवस्था होगी।

अभ्यास प्रश्न 2

अभ्यास प्रश्न 3

अभ्यास प्रश्न 4

अभ्यास प्रश्न 5

अभ्यास प्रश्न 6

अभ्यास प्रश्न 7

रचनानुवादकौमुदी अभ्यास ३०

डॉ. कपिलदेव द्विवेदी जी (Dr. Kapil Dev Dwivedi Ji) द्वारा लिखित, संस्कृत भाषा सीखने की उत्तम पुस्तक रचनानुवादकौमुदी (Rachna Anuvad Kaumudi) के अभ्यास २६के सभी उत्तर (answer key) आप यहाँ देख कर मिलान कर सकते हैं।

आप से अनुरोध है, कृप्या अभ्यास प्रश्नों को स्वयं हल करने का प्रयास करें। प्रश्न हल करने के पश्चात् केवल मिलान हेतु इस उत्तरपुस्तिका का प्रयोग करें। यदि किसी भी प्रकार का संशय हो तो कृपया कमेंट में लिख सकते हैं।

मूल हिंदी वाक्य एवं संस्कृत अनुवाद –

१ उदाहरण वाक्य:-

  1. भूभृत् कस्यचित् महीक्षितो राज्यं जिगीषति।
    राजा किसी राजा के राज्य को जीतना चाहता है।
  2. विवक्षु: विपश्चित् किंचिद् विवक्षति।
    बोलने का इच्छुक विद्वान् कुछ बोलना चाहता है।
  3. मरुद् वाति, इतः एति च।
    वायु बहती है और चलती है।
  4. विपश्चित् एति, सूर्यः उदेति, शत्रुः अपैति।
    विद्वान् जाता है, सूर्य उदय होता है शत्रु दूर हटता है।
  5. जिज्ञासुः भूभृत् परह्योऽत्र ऐत्, ह्योऽगच्छच्च।
    जिज्ञासु राजा परसों यहाँ आया और कल गया।
  6. शुश्रूषु: विपश्चित् श्वः एष्यति, परश्वो गमिष्यति च।
    सुनने का इच्छुक विद्वान् कल आएगा और परसों जायेगा।
  7. शुश्रूषु: गुरोः शुश्रूषां कुर्यात्।
    सेवा करने का इच्छुक गुरु की सेवा करे।
  8. चिकित्सको जिघांसुमपि चिकित्सति।
    चिमित्सक मारने का इच्छुक व्यक्ति की भी चिकित्सा करना चाहता है।
  9. विपश्चिद् धर्मं मीमांसिष्यते।
    विद्वान् धर्म की मीमांसा (गम्भीर विचार) करना चाहेगा।
  10. चिकीर्षुः कार्यं चिकीर्षतु।
    करने का इच्छुक कार्य को करना चाहे।
  11. जिज्ञासुः धर्मं जिज्ञासेत।
    जिज्ञासु धर्म को जानना चाहे।
  12. दिदृक्षुः महीक्षितं दिदृक्षते।
    देखने का इच्छुक राजा को देखना चाहता है।
  13. पिपासुः जलं पिपासति।
    प्यासा जल पीना चाहता है।
  14. तितीर्षु: गङ्गां तिषीर्षति।
    तैरने की इच्छुक गंगा में तैरना चाहता है।
  15. विपश्चित् तत्र एति, एतु, इयात् ऐत्, एष्यति वा।
    विद्वान् यहाँ जाता है, जाये, जाना चाहिए, गया अथवा जायेगा।
  16. कस्मैचित् शुश्रूषा रोचते।
    किसी को सेवा करना अच्छा लगता है।

२. संस्कृत बनाओ-

    1. बालक पढ़ना चाहता है, बोलना चाहता है, सेवा करना चाहता है और कार्य करना चाहता है।
      बालकः पिपठिषति, विवक्षति, शुश्रूषते, कार्यं चिकीर्षति च।
    2. शिष्य तैरना चाहता है, धर्म को जानना चाहता है, जल पीना चाहता है, दान देना चाहता है, वस्त्र धारण करना चाहता है और धन पाना चाहता है।
      शिष्यः तिषीर्षति, धर्मं जिज्ञासते, जलं पिपासति, दानं दित्सति, वस्त्रं धित्सति, धनं लिप्सते च।
    3. राजा शत्रु को मारना चाहता है, मरणासन्न को देखना चाहता है, धन लेना चाहता है और राज्य जीतना चाहता है।
      भुभृत् शत्रुं जिघांसति, मुमूर्षुं दिदृक्षते, धनं जिघृक्षति, राज्यं जिगीषति च।
    4. चिकित्सक मरणासन्न की चिकित्सा करना चाहता है, भोजन खाना चाहता है, सत्य पर विचार करना चाहता है, और पापों को छोड़ना चाहता है।
      चिकित्सक: मुमूर्षं चिकित्सति, भोजनं बुभुक्षते, सत्ये मीमांसते, पापानि मुमुक्षति च।
    5. किसी को शुश्रूषा, किसी को चिकित्सा, किसी को धर्म की मीमांसा और किसी को सत्य की जिज्ञासा अच्छी लगती है।
      कस्मैचित् शुश्रूषा, कस्मैचित् चिकित्सा कस्मैचित् धर्मस्य मीमांसा कस्मैचित् च सत्यस्य जिज्ञासा रोचते ।
    6. वह परसों आया था, कल गया।
      सः परह्यः ऐत्, ह्यः अगच्छत्।
    7. मैं कल जाऊँगा, परसों पुनः आऊँगा।
      अहं श्वः एष्यामि, परश्व: पुनः गमिष्यामि।
    8. सुनने का इच्छुक सुनने की इच्छा करे, प्यासा जल पिये, जिज्ञासु जानना चाहे और तैरने का इच्छुक तैरे।
      शुश्रूषुः शुश्रुषतां, पिपासुः जलं पिपासतु, जिज्ञासुः जिज्ञासतां, तितीर्षुः च तितीर्षताम्।
    9. सूर्य उदय होता है।
      सूर्यः उदेति।
    10. वह आता है।
      स ऐति।
    11. वह दूर हटता है।
      स अपैति।
    12. वह जाता है।
      स एति।
    13. मैं जाता हूँ।
      अहम् एमि।
    14. वह जावे।
      स एतु।
    15. तू जा।
      त्वम् इहि।
    16. मैं जाऊँ।
      अहम् अयानि।
    17. वह गया।
      स ऐत्।
    18. मैं गया।
      अहम् आयम्।
    19. तू गया।
      त्वम् ऐः।

    रचनानुवादकौमुदी पुस्तक के तीनो खंडो के सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए कृप्या यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद।

    NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 8

    प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के अष्टमः पाठः (सुक्तिस्तबकः) में दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

    सुक्तिस्तबकः – पाठ 8 का हिंदी अनुवाद

    उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥1॥

    अन्वय:– हि कार्याणि उद्यमेन सिध्यन्ति, मनोरथै: न (सिध्यन्ति) । हि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः न प्रविशन्ति।

    अर्थ- सभी कार्य परिश्रम से सिद्ध होते है, केवल इच्छा करने मात्र से पूरे नहीं होते। जैसे कि सोये हुए शेर के मुँह में पशु स्वयं प्रवेश नहीं करते। (शेर को उनका शिकार करना पड़ता है।)

    पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः।
    किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः ॥2॥

    अन्वय:- पुस्तके पठितः पाठः (यदि) जीवने न साधितः I (तर्हि) यो (पाठ:) जीवने न सार्थकः, तेन पाठेन किं भवेत् ?

    अर्थ- पुस्तक में पढ़ा हुआ पाठ (ज्ञान) यदि जीवन में उपयोग नहीं किया। अतः जो पाठ जीवन में सार्थक (उपयोगी) नहीं है तो उस पढ़े हुए पाठ का क्या हो ? (अर्थात् उससे क्या लाभ ?)

    प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः ।
    तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥3॥

    अन्वयः– सर्वे मानवाः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति। तस्मात् (अस्माभिः) प्रियं हि वक्तव्यम्, वचने का दरिद्रता (अस्ति)?

    अर्थ – प्रियवाक्य बालने से सभी मनुष्य प्रसन्न होते हैं। इसलिए (हमें) प्रिय (मधुर वाणी) ही बोलना चाहिए, बोलने में क्या गरीबी ? (अर्थात् बोलने में कंजूसी क्यों?)

    गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि ।
    अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति ॥4॥

    अन्वयः– गच्छन् पिपीलकः अपि शतानि योजनानां याति। (परं) अगच्छन् वैनतेयः पदमेकम् अपि न गच्छति।

    अर्थ- चलती हुई (नर) चींटी भी सैकड़ो कोस चली जाती है। परन्तु न चलता हुआ गरुड़ एक कदम भी नही जा पाता। (अतः हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए।)

    काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
    वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः॥5॥

    अन्वयः– काकः कृष्णः पिकः (अपि) कृष्णः (भवति), पिककाकयोः क: भेदः? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः (भवति),पिकः पिकः (भवति)।

    अर्थ- कौआ भी काला होता है और कोयल भी काली होती है। तो फिर कौए और कोयल में क्या भेद होता है? वसन्त ऋतु आने पर (पता चलता है कि) कौआ तो कौआ होता है और कोयल कोयल ही होती है।

    अभ्यास प्रश्न 2

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    अभ्यास प्रश्न 5

    अभ्यास प्रश्न 6

    NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 7

    प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के सप्तमः पाठः ( बकस्य प्रतिकारः) में दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

    बकस्य प्रतिकारः (अव्यय प्रयोग:)– पाठ 7 का हिंदी अनुवाद

    एकस्मिन् वने शृगालः बकः च निवसतः स्म।
    एक वन में सियार और बगुला रहते थे।
    तयो: मित्रता आसीत्।
    उन दोनों की मित्रता थी।
    एकदा प्रातः शृगालः बकम् अवदत् – “मित्रा! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।”
    एक बार सुबह सियार बगुले को बोला – हे मित्र! कल तुम मेरे साथ भोजन करो।
    शृगालस्य निमन्त्रेण बकः प्रसन्नः अभवत्।
    सियार के निमन्त्रण से बगुला प्रसन्न हुआ।

    अग्रिमे दिने सः भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्।
    अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के घर गया।
    कुटिलस्वभावः शृगालः स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्।
    कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले के लिए खीर दी।
    बकम् अवदत् च- “मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः।”
    और बगुला को बोला- “हे मित्र! इस पात्र में हम दोनों अब साथ ही खाते है।”
    भोजनकाले बकस्य चञ्चु: स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्।
    भोजन के समय बगुले की चोंच थाली से भोजन खाने में समर्थ नहीं हुई।
    अतः बकः केवलं क्षिरोदनम् अपश्यत्।
    इस प्रकार बगुले ने केवल खीर को देखा।
    शृगाल: तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्।
    सियार तो सारी खीर खा गया।

    शृगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत् – ” यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि।”
    सियार से ठगा गया बगुले ने सोचा – “जैसे इस ने मेरे साथ व्यवहार किया वैसे मैं भी उसके साथ व्यवहार करूँगा।”
    एवं चिन्तयित्वा सः शृगालम् अवदत् -” मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि।”
    इस प्रकार सोचकर वह सियार को बोला – “हे मित्र! तुम भी कल श्याम को मेरे साथ भोजन करोगे।”
    बकस्य निमन्त्रणेन शृगालः प्रसन्नः अभवत्।
    बगुले के निमन्त्रण से सियार प्रसन्न हुआ।
    यदा शृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बकः सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, शृगालं च अवदत्- “मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्वः।”
    जब सियार श्याम को बगुले के घर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने संकुचित मुख वाले कलश में खीर दी, और सियार से बोला – “हे मित्र! हम दोंनो इस पात्र में साथ ही भोजन करते है।
    बकः कलशात् चञ्च्वा क्षीरोदनम् अखादत्।
    बगुले ने कलश से चोंच के द्वारा खीर खायी।
    परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्।
    परन्तु सियार का मुख कलश में प्रवेश नहीं कर सका।
    अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्।
    इस प्रकार बगुले ने सारी खीर खायी।
    शृगालः च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्।
    और सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा।

    शृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।
    सियार बगुले के साथ जैसा व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा व्यवहार करके बदला लिया।

    उक्तमपि
    और कहा भी है –

    आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दु:खदम्।
    तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥

    अर्थ– अपने द्वारा किए गए दुर्व्यहार का परिणाम दुःख होता है।
    इसलिए सुख चाहने वाले मनुष्य के द्वारा अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

    अभ्यास प्रश्न 2

    अभ्यास प्रश्न 3

    अभ्यास प्रश्न 4

    अभ्यास प्रश्न 5

    अभ्यास प्रश्न 6

    NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 6

    प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के षष्ठः पाठः (समुद्रतटः) में दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

    समुद्रतटः (तृतीया-चतुर्थी – विभक्तिः)– पाठ 6 का हिंदी अनुवाद

    एषः समुद्रतटः।
    यह समुद्र का किनारा है।
    अत्र जनाः पर्यटनाय आगच्छन्ति।
    यहाँ लोग घूमने के लिये आते हैं।
    केचन तरङ्गै क्रीडन्ति।
    कुछ लोग लहरों से खेलते हैं।
    केचन च नौकाभिः जलविहारं कुर्वन्ति।
    और कुछ लोग नौकाओं के द्वारा जलक्रीडा करते हैं।
    तेषु केचन कन्दुकेन क्रीडन्ति।
    उनमें से कुछ लोग गेंद से खेल रहे हैं।
    बालिकाः बालकाः च बालुकाभिः बालुकागृहं रचयन्ति।
    बालिकाएँ और बालक बालुओं से बालू (मिट्टी)का घर बनाते हैं।
    मध्ये मध्ये तरङ्गाः बालुकागृहं प्रवाहयन्ति।
    बीच बीच में लहरें बालू (मिट्टी) का घर बहा देते हैं।
    एषा क्रीडा प्रचलति एव।
    यह खेल चलता हि रहता हैं।
    समुद्रतटाः न केवलं पर्यटनस्थानानि।
    समुद्र का किनारा केवल घूमने की जगह नहीं है।
    अत्र मत्स्यजीविनः अपि स्वजीविकां चालयन्ति।
    यहाँ मछुआरे भी अपनी जीविका को चलाते हैं।

    अस्माकं देशे बहवः समुद्रतटाः सन्ति।
    हमारे देश में बहुत सारे समुद्र के किनारे हैं।
    एतेषु मुम्बई- गोवा- कोच्चि- कन्याकुमारी- विशाखापत्तनम्- पुरीतटाः अतीव प्रसिद्धा: सन्ति।
    इनमें से मुम्बई- गोवा- कोच्चि- कन्याकुमारी- विशाखापटनम- पुरीतट बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं।
    गोवातटः विदेशिपर्यटकेभ्यः समधिकं रोचते।
    गोवा का किनारा विदेशि पर्यटक के लिए सबसे अधिक रोचक है।
    विशाखापत्तनम् – तटः वैदेशिकव्यापाराय प्रसिद्धः।
    विशाखापटनम का किनारा विदेशी व्यापार के लिए प्रसिद्ध है।
    कोच्चितटः नारिकेलफलेभ्य: ज्ञायते।
    कोच्चि तट नारियल फल के लिए जाना जाता है।
    मुम्बईनगरस्य जुहूतटे सर्वे जनाः स्वैरं विहरन्ति।
    मुम्बई नगर के जुहू तट पर सभी लोग बिना रोक टोक के घूमते हैं।
    चेन्नईनगरस्य मेरीनातटः देशस्य सागरतटेषु दीर्घतमः।
    चेन्नई नगर का मेरीना तट देश के सागर तटों में सबसे लम्बा है।

    भारतस्य तिसृषु दिशासु समुद्रतटा: सन्ति।
    भारत कि तीनों दिशाओं में समुद्र तट हैं।
    अस्माद् एव कारणात् भारतदेशः प्रायद्वीपः इति कथ्यते।
    इस कारण से ही भारत देश तीन तरफ से जल से घिरा हुआ भू भाग (प्रायद्वीप) कहलाता है।
    पूर्वदिशायां बङ्गोपसागरः दक्षिणदिशायां हिन्दमहासागरः पश्चिमदिशायां च अबरसागर: अस्ति।
    पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर और पश्चिम दिशा में अरब सागर है।
    एतेषां त्रयाणाम् अपि सागराणां सङ्गमः कन्याकुमारीतटे भवति।
    इन तीनों सागरों का मिलन भी कन्याकुमारी तट पर होता है।
    अत्र पूर्णिमायां चन्द्रोदयः सूर्यास्तं च युगपदेव द्रष्टुं शक्यते।
    यहाँ पूर्णिमा को चन्द्रमा का उदय और सूर्य अस्त (दोनों को)एक ही साथ देखा जा सकता है।

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    अभ्यास प्रश्न 6

    अभ्यास प्रश्न 7

    रचनानुवादकौमुदी अभ्यास २९

    डॉ. कपिलदेव द्विवेदी जी (Dr. Kapil Dev Dwivedi Ji) द्वारा लिखित, संस्कृत भाषा सीखने की उत्तम पुस्तक रचनानुवादकौमुदी (Rachna Anuvad Kaumudi) के अभ्यास २६के सभी उत्तर (answer key) आप यहाँ देख कर मिलान कर सकते हैं।

    आप से अनुरोध है, कृप्या अभ्यास प्रश्नों को स्वयं हल करने का प्रयास करें। प्रश्न हल करने के पश्चात् केवल मिलान हेतु इस उत्तरपुस्तिका का प्रयोग करें। यदि किसी भी प्रकार का संशय हो तो कृपया कमेंट में लिख सकते हैं।

    मूल हिंदी वाक्य एवं संस्कृत अनुवाद –

    १ उदाहरण वाक्यः-

    1. गुरुः शिष्यं नगरं गमयति, बालकं कथाभिः रमयति, शत्रून् शमयति दमयते च, कस्यापि दुःखं न जनयति, अध्यनार्थं त्वरयति, कार्ये घटयति, कमपि न व्यथयति च।
      गुरु शिष्य को नगर भेजता है, बालक को कथा से प्रसन्न करता है, शत्रुओं को शान्त करता है और दमन करता है, किसी को भी दुःख नहीं देते है, अध्ययन के लिए शीघ्रता कराते है, कार्य में लगाते है, किसी को भी दुःखी नहीं देते है।
    2. सज्जनः नृपेण दानं दापयति, धनं धापयति च।
      सज्जन राजा से दान दिलाता है और धन रखवाता है।
    3. धीमान् पुस्तकं स्थापयति।
      बुद्धिमान् पुस्तक को रखता है।
    4. बुद्धिमान् पठने कालं समयं वा यापयति।
      विद्वान् अध्ययन में समय बिताता है।
    5. धनवान् भृत्येन पुत्रं स्नापयति।
      धनवान् नौकर से पुत्र का स्नान करवाता है।
    6. भवन्तः शिष्यान् जलं पाययन्ति।
      आप शिष्यों को जल पिलाते हैं।
    7. भगवान् संसारं पालयेत्।
      भगवान संसार का पालन करवाता है।
    8. गुरुः छात्रं वेदं वाचयति अध्यापयति च।
      गुरु छात्र को वेद बुलवाता और पढ़ता है।
    9. खलः पशुन् घातयिष्यति, सज्जनान् दूषयिष्यति च।
      दुष्ट पशुओं का वध करवायेगा है और सज्जनों को दुष्ट बनायेगा है।
    10. धीमद्भिः श्रीमद्भिश्च बालः पाठ्यते, भारः हार्यते, जनो बोध्यते, न च कदापि कस्यापि धनं चोर्यते, कार्यं क्रियते कार्यते च।
      बुद्धिमान और श्रीमान् के लिए बालक पढ़ाया, वजन ले जाया जाता है, मनुष्य को जागरूक बनाया जाता है और कभी भी किसी का भी धन नहीं चुराया जाता है, कार्य किया जाता है और करवाया जाता है।
    11. सिंहः पशून् हन्ति, हन्तु, हन्यात्, अहन्, हनिष्यति वा।
      सिंह पशुओं को मारता है, मारे , मारना चाहिए, मारा अथवा मारेगा।
    12. स हिमवन्तं गतवान्।
      वह हिमालय पर गया।

    २ संस्कृत बनाओ-

    1. पिता पुत्र को गाँव भेजता है।
      पिता पुत्रं ग्रामं गमयति।
    2. कवि गान से सबको प्रसन्न करता है।
      कविः गानेन सर्वान् रमयति।
    3. यति पापों का दमन करता है।
      यतिः पापानि दमयति।
    4. राजा नौकर को काम में लगाता है और शीघ्रता कराता है।
      नृपः भृत्यं कार्ये घटयति, त्वरयति च।
    5. बुद्धिमान् विवाद शान्त कराता है, सबको सुख देता है।
      धीमान् विवादं शमयति सर्वेषां सुखं जनयति।
    6. बलवान् धनवान् से धीमान् को धन दिलाता है।
      बलवान् धनवता धीमते धनं दापयति।
    7. गुरु शिष्य से पुस्तक यहाँ रखवाता है, शिष्य उन्हें रखता है।
      गुरुः शुष्येण पुस्तकानि अत्र धापयति, शिष्यः तानि स्थापयति।
    8. धीमान् अध्ययन में समय बितावे।
      धीमान् अध्ययने कालं यापयतु।
    9. पुत्र को जल पिलाओ।
      पुत्रं जलं पायय।
    10. राजा से राज्य का पालन कराओ।
      नृपेण राज्यं पालय।
    11. बालक को स्नान कराओ।
      बालकं स्नापय।
    12. शिष्य को पढ़ाओ।
      शिष्यं पाठय।
    13. छात्र को पाठ पढाओ।
      छात्रं पाठं पाठय।
    14. शत्रु का वध कराओ।
      शत्रुं घातय।
    15. वृक्षों को लगाओ।
      वृक्षान् रोपय।
    16. वह शत्रु को मारता है, तू भी शत्रु को मारता है, मैं भी शत्रु को मारता हूँ।
      सः शत्रुं हन्ति, त्वम् अपि शत्रुं हन्सि, अहम् अपि शत्रुं हन्मि।
    17. उसने शत्रु को मारा, तूने चोर को मारा, मैंने दुष्ट को मारा।
      स शत्रुं अहन्, त्वं चोरं अह: अहं दुष्टं अहनम्।
    18. वह चोर को मारेगा, तू उसे मारेगा, मैं उसे मारूंगा।
      स चोरं हनिष्यति, त्वं तं हनिष्यसि, अहं तं हनिष्यामि।
    19. वह दुष्ट का वध करे।
      स दुष्टं हन्तु।
    20. वह मुझको जानता है, मैं उसे जानता हूँ।
      स मां वेत्ति, अहं तं वेद्मि।
    21. वह हिमालय पर्वत पर जाता है।
      स हिमवान्तं याति।
    22. वायु चलती है।
      वायुः वाति।
    23. सूर्य चमकता है।
      सूर्यः भाति।
    24. आप नहाते हैं।
      भवान् स्नाति।
    25. राजा रक्षा करता है।
      नृपः पाति।

    रचनानुवादकौमुदी पुस्तक के तीनो खंडो के सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए कृप्या यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद।

    रचनानुवादकौमुदी अभ्यास २८

    डॉ. कपिलदेव द्विवेदी जी (Dr. Kapil Dev Dwivedi Ji) द्वारा लिखित, संस्कृत भाषा सीखने की उत्तम पुस्तक रचनानुवादकौमुदी (Rachna Anuvad Kaumudi) के अभ्यास २६के सभी उत्तर (answer key) आप यहाँ देख कर मिलान कर सकते हैं।

    आप से अनुरोध है, कृप्या अभ्यास प्रश्नों को स्वयं हल करने का प्रयास करें। प्रश्न हल करने के पश्चात् केवल मिलान हेतु इस उत्तरपुस्तिका का प्रयोग करें। यदि किसी भी प्रकार का संशय हो तो कृपया कमेंट में लिख सकते हैं।

    मूल हिंदी वाक्य एवं संस्कृत अनुवाद –

    १ उदाहरण वाक्य:-

    1. गुरुः बालकेन लेखं लेखयति।
      गुरुः बालक से लेख लिखवाता है।
    2. खलः दुष्टो वा भृत्येन धनं चोरयति।
      दुष्ट नौकर से धन चोरी करवाता है।
    3. बालिका बालं स्वापयति।
      बालिका बालक को सुलाती है।
    4. हरिः देवान् अमृतं भोजयति।
      हरि देवताओं को अमृत खिलाता है।
    5. आभूषणं शिलायाम् आसयत्, अस्थापयत् वा।
      आभूषण को पत्थर पर रखवाया।
    6. पुत्रं सत्यं भाषयति।
      पुत्र से सत्य बुलवाता है।
    7. पिता पुत्रं चन्द्रं दर्शयति।
      पिता पुत्र को चान्द्रमा दिखाता है।
    8. मित्रं वार्तां श्रावयति।
      मित्र को समाचार सुनाता है।
    9. गुरुं गृहं प्रवेशयति।
      गुरु को घर में प्रवेश करवाता है।
    10. भृत्यं वृक्षम् आरोहयेत्।
      नौकार को पेड़ पर चढ़ावे।
    11. रामं गङ्गाम् उत्तारयतु।
      राम गंगा को पार करावे।
    12. सज्जनम् अन्नं ग्राहयिष्यति।
      सज्जन को अन्न ग्रहण करवायेगा।
    13. मित्रं नगरं प्रापयति।
      मित्र को नगर पहुंचाता है।
    14. भृत्येन भारं ग्राममहारयत्।
      नौकर से भार को गाँव में लिजवाया गया।
    15. चत्वारो वेदाः, ऋग्वेद:, यजुर्वेदः, सोमवेदः, अथर्ववेदश्च:।
      चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सोमवेद और अथर्ववेद।
    16. गौः स्वपिति, स्वपितु, अस्वपत्, स्वप्स्यति वा।
      गाय सोती है, सोवे, सोयी अथवा सोयेगी।
    17. गामानय।
      गाय को लाओ।
    18. गोः दुग्धमेतत्।
      यह गाय का दूध है।
    19. गवि शिलां न पातय।
      गाय पर पत्थर न गिराओ।

    २ संस्कृत बनाओ –

    1. राम नौकर से काम कराता है।
      रामः भृत्येन कार्यं कारयति।
    2. पिता पुत्र से पत्र लिखवाता है।
      पिता पुत्रेण पत्रं लेखयति।
    3. गुरु शिष्य को गाँव में भेजता है।
      गुरुः शिष्यं ग्रामं गमयति।
    4. दुष्ट मनुष्य धन चोरी करवाता है।
      दुष्टः मनुष्यः धनं चोरयति।
    5. पिता पुत्र को गीता समझाता है।
      पिता पुत्रं गीतां अवगमयति।
    6. मित्र को भोजन खिलाता है।
      मित्रं भोजनं भोजयति।
    7. गुरु शिष्य को चारों वेद पढ़ाता है।
      गुरुः शिष्यं चत्वारः वेदाः पाठयति।
    8. वह पुत्र को शिला पर बैठाता है।
      सः पुत्रं शिलां आसयति।
    9. भाई बालक को सुलाता है।
      भ्राता बालकं स्वापयति।
    10. मित्र से धर्म कहलावे।
      मित्रं धर्मं भाषयतु।
    11. पिता पुत्र को सूर्य दिखावे।
      पिता पुत्रं सूर्यं दर्शयतु।
    12. पिता को समाचार सुनावे।
      पितरं वार्तां श्रावयतु।
    13. मित्र को घर में प्रविष्ट करावे।
      मित्रं गृहं प्रवेशयतु।
    14. दुष्ट को पेड़ पर चढ़ावे।
      दुष्टं वृक्षम् आरोहयतु।
    15. कृष्ण को यमुना पार करावे।
      कृष्णं यमुनाम् उत्तरयतु।
    16. बालक को पुस्तक पकड़ावे।
      बालकं पुस्तकं ग्राहयतु।
    17. नौकर पुत्र को गाँव पहुँचावे।
      भृत्यं पुत्रं ग्रामं प्रापयतु।
    18. नौकर से बोझ लिवा जावे।
      भृत्येन भारं हारयतु।
    19. गाय सोती है।
      गौः स्वपिति।
    20. बछड़े को देखो।
      वत्सं पश्य।
    21. नौकर गाय का दूध दुहता है।
      भृत्यः गां दुग्धं दोग्धि।
    22. गाय के लिए जल लाओ।
      गवे जलम् आनय।
    23. यह गाय का बच्चा है।
      एष गोः वत्सः अस्ति।
    24. गाय पर बोझ न रखो।
      गवि भारं न स्थापय।
    25. वह सोता है।
      सः स्वपिति।
    26. तू सोता है।
      त्वम् स्वपिषि।
    27. मैं सोता हूँ।
      अहं स्वपिमि।
    28. वह सोवे।
      सः स्वपितु।
    29. तू सो।
      त्वं स्वपिहि।
    30. मैं सोऊँ।
      अहं स्वपानि।
    31. वह सोया।
      सः अस्वपीत्।
    32. तू सोया।
      त्वम् अस्वपीः।
    33. मैं सोया।
      अहम् अस्वपम्।
    34. वह सोयेगा।
      सः स्वप्स्यति।

    रचनानुवादकौमुदी पुस्तक के तीनो खंडो के सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए कृप्या यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद।

    NCERT Sanskrit Class 6 – Lesson 5

    प्रस्तुत लेख में NCERT द्वारा कक्षा ६ के लिए प्रकाशित पुस्तक रुचिरा भाग १ के पञ्चमः पाठः (वृक्षा:) में दिए गए संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद एवं सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।

    वृक्षाः– पाठ 5 का हिंदी अनुवाद

    वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
    वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः॥1॥

    अन्वयः – वृक्षाः वने वने निवसन्त:, वृक्षाः वनं वनं रचयन्ति।

    अर्थ – पेड़ प्रत्येक वन में रहने वाले हैं। पेड़ प्रत्येक वन को बनाते हैं। (अर्थात् वनों में रहने वाले पेड़ ही वनों की रचना करते हैं।)

    शाखादोलासीना विहगाः।
    तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः ॥2॥

    अन्वयः – विहगाः शाखादोलासीनाः, वृक्षाः तैः किमपि कूजन्ति।

    अर्थ – पक्षीगण पेड़ो की शाखा रूपी झूले पर बैठे हैं, जैसे वृक्ष उनके( पक्षियों) माध्यम से कुछ (कह रहे हैं) कूकते हैं।

    पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्।
    साधुजना इव सर्वे वृक्षाः ॥3॥

    अन्वयः – वृक्षाः सन्ततम् पवनं जलं च पिबन्ति, सर्वे वृक्षाः इव साधुजना:।

    अर्थ – पेड़ निरन्तर हवा और जल पीते हैं, सभी पेड़ सज्जनों की तरह होते हैं।( अर्थात् पेड़ साधुओं की तरह हवा और जल पीकर अपना जीवन यापन करते हैं।)

    स्पृशन्ति पादै : पातालं च।
    नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षा:॥4॥

    अन्वयः – वृक्षाः पादैः पातालं स्पृशन्ति, शिरस्सु च नभः वहन्ति।

    अर्थ – वृक्ष पैरो से (जड़ो से)पाताल को स्पर्श करते हैं, और सिर पर आकाश को ढोते हैं।( अर्थात् पेड़ो की जड़े बहुत गहरी हैं और ऊँचे-ऊँचे पेड़ मानो आसमान को अपने सिर पर धारण किए हुए हो)

    पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम्।
    कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः॥5॥

    अन्वयः– वृक्षाः पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बं, कोतुकेन पश्यन्ति।

    अर्थ – पेड़ जलरूपी दर्पण में अपने प्रतिबिम्ब (परछाई) को आश्चर्य से देखते हैं। ( अर्थात् नदी किनारे स्थित पेडों का प्रतिबिम्ब नदी के जल में दिखाई देता हैं।)

    प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम्।
    कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः॥6॥

    अन्वयः – वृक्षाः स्वच्छायासंस्तरणम्, प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति।

    अर्थ – पेड़ अपनी छाया रूपी बिस्तर को फैलाकार (सबका)आदर करते हैं।( अर्थात् पेड़ अपनी छाया रूपी बिस्तर में सबको विश्राम के लिए आमन्त्रित करते हैं।)

    अभ्यास प्रश्न 1

    अभ्यास प्रश्न 2

    अभ्यास प्रश्न 3

    अभ्यास प्रश्न 4

    अभ्यास प्रश्न 5

    अभ्यास प्रश्न 6

    रचनानुवादकौमुदी अभ्यास २७

    डॉ. कपिलदेव द्विवेदी जी (Dr. Kapil Dev Dwivedi Ji) द्वारा लिखित, संस्कृत भाषा सीखने की उत्तम पुस्तक रचनानुवादकौमुदी (Rachna Anuvad Kaumudi) के अभ्यास २७ के सभी उत्तर (answer key) आप यहाँ देख कर मिलान कर सकते हैं।

    आप से अनुरोध है, कृप्या अभ्यास प्रश्नों को स्वयं हल करने का प्रयास करें। प्रश्न हल करने के पश्चात् केवल मिलान हेतु इस उत्तरपुस्तिका का प्रयोग करें। यदि किसी भी प्रकार का संशय हो तो कृपया कमेंट में लिख सकते हैं।

    मूल हिंदी वाक्य एवं संस्कृत अनुवाद –

    १ उदाहरण वाक्य: –

    1. पित्रा पुत्रः उच्यते।
      पिता के द्वारा पुत्र को कहा जाता है।
    2. भ्रात्रा भ्राता वन्द्यते।
      भाई के द्वारा भाई को प्रणाम किया जाता है।
    3. जामात्रा श्वशुरः स्तूयते।
      जवाँई के द्वारा श्वशुर की स्तुति जाती है।
    4. मया दुग्धं दुह्यते, दुह्यताम् , दुह्येत, अदुह्यत वा।
      मेरे द्वारा दूध दुहा जाता है, दुहा जाये, दुहा जाना चाहिए अथवा दुहा गया।
    5. मया त्वया तेन तैः वा ग्रन्थः पठ्यते, लेखः लिख्यते, नगरं रक्ष्यते, कन्या दृश्यते, धनं लभ्यते, अजा नीयते, धनं याच्यते च।
      मेरे द्वारा, तेरे द्वारा, उसके द्वारा अथवा उन सब के द्वारा ग्रन्थ पढ़ा जाता है, लेख लिखा जाता है, नगर की रक्षा की जाती है, कन्या को देखा जाता है, धन पाया जाता है, बकरी को ले जाया जाता है और धन माँगा जाता है।
    6. अस्माभिः युष्माभिश्च दानं दीयते, वस्त्राणि धीयन्ते, तण्डुला: माषा: यवाश्च नीयन्ते, गृहे स्थीयते, गानं गीयते, जलं पीयते, कार्यं हीयते, शत्रुः च अवसीयते।
      हम सब के द्वारा और तुम सब के द्वारा दान दिया जाता है, वस्त्र धारण किये जाते हैं, चावल, उड़द और जौ ले जाये जाते हैं, घर पर रुका जाता है, गाना गाया जाता है, जल पिया जाता है, कार्य छोड़ा जाता है और शत्रु नष्ट किया जाता है।
    7. तैः कार्याणि क्रियन्ताम्, धनानि ह्रियन्ताम्, वस्त्राणि ध्रियन्ताम्, बालाश्च भ्रियन्ताम्, पाठाश्च स्मर्यन्ताम्।
      उनके द्वारा कार्य किये जायें, धन चुराया जाये, वस्त्रों को धारण किया जायें, बालकों का पालन किया जाये और पाठों को याद किया जाये।
    8. तेन भोजनं गीर्यते, शब्दः उदगीर्यते जलं तीर्यते, कार्यं पूर्यते, सखा व्रियते च।
      उसके द्वारा भोजन निगला जाता है, शब्द बोला जाता है, जल में तैरा जाता है, कार्य पूरा किया जाता है और मित्र चुना जाता है।
    9. तेन वचनम् उच्यते, प्रातः इज्यते, बीजानि उप्यन्ते, भारः उह्यते, पुष्पं गृह्यते, छात्रः च पृच्छ्यते।
      उसके द्वारा वचन कहा जाता है, प्रातः यज्ञ किया जाता है, बीज बोये जाते हैं, भार ढोया जाता है, फूल लिया जाता है और छात्र को पूछा जाता है।
    10. मया रिपुः जीयते, अग्नौ हूयते, फलानि चीयन्ते, दुग्धं मथ्यते, दर्जनः बध्यते, गुरुः कथ्यते, भोजनं च भक्ष्यते।
      मेरे द्वारा शत्रु जीता जाता है, अग्नि में हवन किया जाता है, फलों को चुना जाता हैं, दुध मथा जाता है, दुर्जन बान्धा जाता है, गुरु से कहा जाता है और भोजन खाया जाता है।

    २. संस्कृत बनाओः –

    1. मेरी द्वारा पाठ पढ़ा जाता है।
      मया पाठ: पठ्यते।
    2. तेरे द्वारा लेख लिखे जाते हैं।
      त्वया लेखाः लिख्यन्ते।
    3. राम के द्वारा दूध दुहा जाता है।
      रामेण दुग्धं दुह्यते।
    4. राजा के द्वारा नगर की रक्षा की जाती है।
      राज्ञा नगरं रक्ष्यते।
    5. शिष्य के द्वारा भार ले जाया जाता है।
      शिष्येन भारः उह्यते।
    6. मेरे,तेरेऔर राम के द्वारा दान दिया जाता है,जल पिया जाता है, पुस्तकें रखी जाती हैं,वस्त्र नापा जाता है, गाने गाये जाते हैं, नगर में रहा जाता है, घर छोड़ा जाता है और पाप नष्ट किये जाते हैं।
      मया, त्वया, रामेण च दानं दीयते, जलं पीयते, पुस्तकानि धीयन्ते, वस्त्रं मीयते, गीतानि गीयन्ते, नगरे स्थीयते, गृहं त्यज्यते, पापानि च अवसीयन्ते।
    7. मेरे द्वारा खाना खाया जाये,उपदेश कहां जाये,अध्यन पूर्ण किया जाये, तैरा जाये और कन्या छाँटी जाये।
      मया भोजनं भक्ष्यताम्, उपदेश: उद्ग्रीर्यताम्, अध्ययनं पूर्यताम् , तीर्यताम्, कन्या च व्रियताम् ।
    8. उसके द्वारा कार्य किया जाये, वस्त्र हरण किये जायें और वचन कहा जाये।
      तेन कार्यं क्रियताम्, वस्त्राणि ह्रियन्ताम्, वचनं च उच्यताम् ।
    9. तेरे द्वारा वस्त्र धारण किया गया, पाठ पूछा गया, शत्रु जीता गया, गुरु की स्तुति की गयी,समुद्र मथा गया, प्रात:काल हवन किया गया,फूल चुने गये,भोजन खाया गया ,ईश्वर का चिन्तन किया गया और गुरु की वंदना की गई।
      त्वया वस्त्रम् अधीयत, पाठः अपृच्छयत, शत्रुः अजीयत, गुरुः अस्तूयत, समुद्रः अमथ्यत, प्रातः काले अहूयत, पुष्पाणि अचीयन्त, भोजनम् अभक्ष्यत, ईश्वरः अचिन्त्यत, गुरुः च अवन्द्यत।
    10. पिता के द्वारा चिंतन किया जाता है, हरि का भजन किया जाता है, दुर्जन को शाप दिया जाता है, बीज बोया जाता है और धन लिया जाता है।
      पित्रा चिन्त्यन्ते, हरिः भज्यते, दुर्जनः शप्यते, बीजम् उप्यते, धनं च गृह्यते।
    11. भाई और दामाद के द्वारा भोजन किया जाता है।
      भ्रात्रा, जामात्रा च भोजनं भक्ष्यते।
    12. वह दूध दुहता है।
      सः दुग्धं दोग्धि।
    13. तू भी दूध दुहता है।
      त्वं अपि दुग्धं धोक्षि।
    14. मैं दूध नहीं दुहता हूँ।
      अहं दुग्धं न दोह्मि।
    15. वह दूध दुहे।
      स: दुग्धं दोग्धु।
    16. तू दूध दुह।
      त्वं दुग्धं दुग्धि।
    17. आज मैं ही दूध दुहूँ।
      अद्य अहं दुग्धं दोहानि।
    18. उसने दूध दुहा।
      सः दुग्धम् अधोक्।
    19. मैंने दूध दुहा।
      अहं दुग्धम् अदोहम्।
    20. वह दूध दुहेगा, तू भी दूध दुहेगा।
      सः दुग्धं धोक्ष्यति, त्वं अपि दुग्धं धोक्ष्यसि।

    रचनानुवादकौमुदी पुस्तक के तीनो खंडो के सभी अभ्यास प्रश्नों के उत्तर देखने के लिए कृप्या यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद।

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