इंसान के इस धरा पर आने से लेकर जाने तक उसका जीवन अनेक प्रकार के संघर्षों से भरा रहता है । संघर्ष अस्तित्व का, संघर्ष सामाजिक सम्मान का, संघर्ष स्वाभिमान का, संघर्ष विचारों का, संघर्ष पारिवारिक/सामाजिक / धार्मिक / वैचारिक सामजस्य का, संघर्ष आशाओं/अपेक्षाओं/ इच्छाओं/ भावनाओं का । न जाने कितने प्रकार के संघर्षों से मिलकर बनता है यह जीवन । चाहे कोई अमीर हो या गरीब सभी को अपने जीवनकाल में संघर्षों के इस महासागर से होकर गुजरना पड़ता है । इन संघर्षों के पीछे मानव स्वभाव है जो हमेशा ही असंतुष्ठ रहता है । असंतुष्ठी अज्ञानता के कारण होती है जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक/मानसिक तकलीफों को जन्म देती है । तमाम समय जीवन के इन संघर्षों में व्यतीत हो जाता है । सच्चाई तो यह है की संघर्ष जीवन का पर्याय है। यानी की जीवन है तो संघर्ष है और संघर्ष है तभी जीवन है । सच्चाई कुछ भी हो लेकिन सत्य यह है की सबके जीवन में एक दिन आता है जब उसे अपने सारे सांसारिक चोले उतारकर कर, संसार के सारे संघर्षों को यहीं छोड़कर जैसा आया था वैसा ही वापस जाना पड़ता है । इस संसार में इंसान के आने जाने का यह सिलसिला अनंतकाल से चला आ रहा है । असंख्य इंसान आए, असंख्य चले गए । सभी ने संघर्षों के इस भवसागर को पार किया । मानव संघर्षों का सीधा प्रभाव मन पर पड़ता है जो उसकी मानसिक स्थितियों जैसे की द्वंद/क्लेश/विकार/खुशी/गम / तनाव इत्यादि का कारण बनता है । मानव संघर्षों के विभिन्न कारकों से समय समय पर बनती बदलती मानसिक स्तिथियां से मिलकर पूरी होती है इंसान की जीवन यात्रा ।
जीवन यात्रा कैसी भी रही हो लेकिन जीवन यात्रा के कुछ सत्यों की बात की जाए तो सच्चाई यह है की :-
(१) सबको पता है की संसार में जो आया है उसका जाना तय है । समय कम या ज्यादा हो सकता है । लेकिन फिर भी हर इंसान सदियों के संग्रह की अंधी दौड़ में लगा रहता है।
(२) हर इंसान जीवनकाल का अधिकतम हिस्सा वो सोचने में गुजार देता है जिसका कोई मतलब ही नहीं होता । जैसे की लोग क्या कहेंगे।
(३) आशा/अपेक्षा/मान/सम्मान/पहचान का शिकार हर इंसान होता है जिसके चलते वो अनेकानेक मानसिक संतापों को बेवजह आमंत्रण देता है ।
(४) हर इंसान दूसरों से तो हमेशा अच्छे की अपेक्षाएं रखता है लेकिन जब उसकी बारी आती है तो वो भी दूसरों के प्रति वैसा ही बर्ताव करता है जैसा दूसरे उसके प्रति करते हैं ।
(५) हर इंसान जीवन भर पैसे के पीछे भागता रहता है । कितना ही पैसा हो वो संतुष्ट कभी नहीं होता । “और अधिक” की भूख की बीमारी से इंसान जीवन भर पीड़ित रहता है ।
(६) असंतोष, इंसान को आगे तो बढ़ाता है लेकिन साथ ही उसका वर्तमान खराब कर देता है ।
(७) जो मिला है उसके लिए खुश हो ना हो, लेकिन जो नहीं मिला उसके लिए दुखी होना मानव का स्वभाव है ।
(८) इंसान जीवन भर आशा/अपेक्षा/ इच्छाओं के बंधन में बंध कर रह जाता है । उसका हर पल इन्हीं के इर्द गिर्द गुजरता है । धन, सम्पत्ति, प्यार, सम्मान, पहचान, दिखावे की अंधी दौड़ में वो शामिल होकर जीवन पर्यन्त दौड़ाता रहता है और सुनहरे भविष्य के सपने बुनता रहता है । लेकिन सत्य यह है की इस चाहत के पीछे वो अपना बहुमूल्य वर्तमान खराब कर रहा होता है ।
(९) चाहे कोई राजा हो या रंक, सम्राट हो या भिखारी अंत सबका एक ही होता है, मिट्टी में मिलना उसमें कोई अंतर नहीं होता फिर भी इंसान जीवन भर साम, दाम, दंड, भेद के मकड़जाल में उलझा रहता है ।
(१०) जीवन का अधिकतर समय इंसान इस गलतफहमी में गुजार देता है की उसके बगैर दुनियां नहीं चलेगी । जबकि सत्य यह है की बड़े – बड़े सिकंदर आए और चले गए लेकिन दुनियां आज भी वैसे ही चल रही है। दुनियां का दस्तूर है की जाने वाले को कोई ज्यादा दिन याद नहीं रखता ।
(११) इंसान कई गलतियों को महसूस तो करता हैं लेकिन उनको सुधारने का प्रयास नहीं करता ।
(१२) एक आम आदमी की जिंदगी देने से ज्यादा पाने की चाहत में गुजरती है । किसी को समय/ सेवा / शिक्षा/ मीठे बोल/ मुस्कुराहट दान कर इंसान बहुत कुछ पा सकता है ।
(१३) अपनी सोच व बर्ताव को ही सर्वोत्तम समझना सामान्य मानव प्रवृत्ति है । इंसान को हमेशा दूसरों की सोच और बर्ताव में कमियां नजर आती है। इंसान की यह प्रकृति इंसान की मानसिक परेशानी की मुख्य वजह होती है ।
(१४) जिंदगी के अंतिम पड़ाव (वृद्धावस्ता) में इंसान की दौलत को उसके स्वास्थ्य, संबंध और समझ से आंका जाता है न की धन संपत्ति से । जिंदगी की दौड़ में किसने कितना धन कमाया यह महत्वपूर्ण नहीं । महत्वपूर्ण यह है की आपने अपने स्वास्थ्य, संबंध और समझ को कितना मजबूत किया क्योंकि अंत में वही काम आता है । जीवन यापन के लिए धन कमाना जरूरी है लेकिन इसके साथ-साथ इंसान स्वास्थ्य, संबंध और समझ भी कमाकर जीवन को खुशहाल बना सकता है ।
(१५) हर इंसान दूसरों से मान, सम्मान, खुशी की अपेक्षा रखता है लेकिन प्रकृतिवश दूसरों को खुशी देने में कंजूसी करता है ।
(१६) इंसान का स्वभाव है की वो अपनी जिंदगी का अधिकतर वक्त अभाव व प्रभाव में व्यतीत कर देता है ।
(१७) खुशियों के बीच दर्द ढूंढना हर इंसान की फितरत है । इंसान तमाम सुख की वजहों के बीच भी अपने दुखी होने की कुछ न कुछ वजह ढूंढ ही लेता है और उसको सोच विचार का मुख्य मुद्दा बना लेता हैं ।
(१८) यह जानते हुए भी की अहम, ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मोह तमाम मानसिक दुखों का मूल कारण हैं, इंसान अपने आपको इनसे दूर नहीं रख पाता ।
(१९) क्षमा,त्याग और संयम की भावना इंसान को कई मानसिक रोगों से बचा सकती है। इंसान जानता और समझता सब है लेकिन अज्ञानतावश उस समझ को अपने जीवन में उतार नहीं पाता । जीवन पर्यन्त वह उस ज्ञान और समझ की अपेक्षा दूसरों से करने में ही गुजार देता है ।
(२०) हर समय इंसान दूसरों को सलाह, मशवरा देने के लिए लालायित रहता है लेकिन उसे स्वयं को सलाह देने में मुश्किल होती है।
(२१) समय बहुत बलवान है । पलों में इंसान हीरो से जीरो और जीरो से हीरो हो जाता है । जीवन में समय का सम्मान बहुत जरूरी है। वक्त बहुत बड़ा गुरु है । कई चीजें वक्त के साथ ही समझ में आती है । समय से पहले उस समझ की अपेक्षा करना बेवकूफी है ।
(२२) जिन सांसारिक वस्तुओं के संग्रह के लिए इंसान जीवन भर तमाम जद्दोजहद करता है । जब इंसान वापस जाने के नजदीक आता है तो उसके लिए उन वस्तुओं का बहुत ज्यादा महत्व नहीं रह जाता ।
(२३) ना जाने कितनी योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है । इस जीवन की अहमियत समझना नितांत जरूरी है ।
(२४) इंसान को अपनी समस्या दुनियां में सबसे भारी लगती है जबकि
दुनियां देखने से पता लगता है की लोग उस से कई गुना बडी समस्या से भी झूझ रहे होते हैं ।
जीवन के उपरोक्त कटु सत्यों को समझकर जीवन की जटिलताओं और मानसिक विकारों को थोड़ा कम किया जा सकता है। सत्यों को समझकर और “होगा वही जो राम रची राखा” को स्वीकार कर जीवन को सरल बनाया जा सकता है । अपने आपको विशेष समझना, कम आंकना, चीजों को दिल से लगाना या उनके बारे में चिंतित रहना निरी नासमझी है । जीवन के बारे में चिंता नहीं चिंतन की आवश्यकता है । चिंतन व मनन करके जीवन की कई गुत्थियों को सुलझाया जा सकता है और जीवन को सरल, सहज और सुंदर बनाया जा सकता है।
यह भी सत्य है की इंसान का आचार, विचार, व्यवहार, बर्ताव, प्रवृत्ति उसके प्रारब्ध, पारिवारिक/सामाजिक/आर्थिक/भौगोलिक/शैक्षिक/शारारिक/धार्मिक जैसी तमाम पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है जिनपर इंसान का बहुत ज्यादा नियंत्रण नहीं होता और इसलिए इंसान अपने स्वभाव में बहुत ज्यादा प्रयास के बाद भी बहुत बड़ा परिवर्तन लाने में असक्षम रहता है । लेकिन फिर भी जीवन की उपरोक्त सच्चाईयों के बारे में लगातार चिंतन एवं मनन करके इंसान जीवन की चुनौतियों और विकटताओं को कुछ हल्का कर सकता है ।
हम देवता नहीं इंसान हैं लेकिन फिर भी जीवन की कटु सच्चाइयों की समझ पैदा कर देवता बनने का प्रयास तो कर ही सकते हैं ।
।। हरी ॐ ।।
जगदीश गुप्ता (२६/०५/२०२४)