इनसान हैं इनसान बन जीने दो …
March 24, 2017 by Manju Mishra
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मुक्त करो पंख मेरे पिजरे को खोल दो
मेरे सपनो से जरा पहरा हटाओ तो …
आसमाँ को छू के मैं तो तारे तोड़ लाऊंगी
एक बार प्यार से हौसला बढाओ तो …
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बेटों से नहीं है कम बेटी किसी बात में
सुख हो या दुःख सदा रहती हैं साथ में
वंश सिर्फ बेटे ही चलाएंगे न सोचना
भला इंदिरा थी कहाँ कम किसी बात में
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बेटियों को बेटियां ही मानो नहीं देवियाँ
पत्थर की मूरत बनाओ नहीं बेटियां
इनसान हैं इनसान बन जीने दो …
हंसने दो रोने दो गाने मुस्कुराने दो
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Posted in माँ - बेटी और माँ, मेरी पसंद | Tagged कविता, बेटी, मेरी, मेरी हिंदी कविता, मैं, समाज, हिंदी कविता, हिन्दी | 3 Comments
वाह मैम बहुत खूब रचना है
हर बेटी के हृदयतल से निकली मर्मस्पर्शी सच्ची अनुभूति की प्रभावी अभिव्यक्ति । बहुत सुन्दर !!
धन्यवाद शकुंतला जी !